गांव सामान्य सा दिखता है। पर गमछा मुंह पर बांधे है और सहमा हुआ है। आसपास के इलाके में अभी किसी के बीमार होने या मरने की खबर नहीं है, वह होने पर शायद गांव भी घरों में दुबक जाये।
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विजय शंकर उपाध्याय
पूछने पर स्वत: बताने लगे वे सज्जन. सब पानी ने चौपट कर दिया. और अभी तक पानी लगा है. जमीन सूखी होती तो आलू, चना, मटर के पौधे बड़े हो रहे होते.
कठिन है जीवन, पिछली बरसात के बाद
जहां महुआरी थी, वहां अब झील बन गयी है। वह पानी कहीं निकल नहीं सकता। गांव वालों में न तो सामुहिक काम कर जल का प्रवाह बनाने की इच्छा है और न साधन। सरकार का मुंह देख रहे हैं…
