सवेरे की चाय


हरे भरे परिसर में प्रकृति के बीच आधा-आधा लीटर चाय सेवन! गर फिरदौस बर रुये जमीन अस्त्। अगर पृथ्वी पर स्वर्ग कहीं है तो वह इंटरमिटेंट फास्टिंग के बाद सवेरे के चाय के इस अनुष्ठान में ही है। यहीं है, यहीं है और यहीं ही है!

उमरहाँ के राकेश मिसिर जी


राकेश जी को छोड़ने के लिये मैं घर के गेट तक गया। उनके जाते हुये मन में विचार आया कि घर में किसी के आने पर उन्हें चाय परोसी जाये तो (लौंग-इलायची भले हो न हो) साथ में तश्तरी में एक चुनौटी और सुरती होनी ही चाहिये।

खुले आसमान तले निपटान


अगले पच्चीस साल में भारत विकसित देश बन जायेगा। तब भी लोग प्लास्टिक की बोतल ले कर दिशा-मैदान के लिये जाते-आते दिख जायेंगे। शर्त लगाई जा सकती है!

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