मिशन मचिया पीछा नहीं छोड़ रहा। पर यह भी है कि हम पीछा छुड़ाना भी नहीं चाहते! क्रियेटिव आनंद मिल रहा है उसमें। :-)
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1941 से 2021 – अनिरुद्ध कर्मकार से राजबली विश्वकर्मा
मैं ‘गणदेवता’ जैसे किसी दस्तावेज सृजन का स्वप्न तो नहीं देखता; पर अपने जीवन की दूसरी पारी में गांव में रहने के कारण यह तो मन में है कि पचास साल से हुये ग्रामीण बदलाव को महसूस किया जाये और लेखन में (भले ही ब्लॉग पर ही हो) दर्ज किया जाये।
2 मचिया बन गये अंतत:
मचिया के फ्रेम से मेरी पत्नीजी को एक और रचनात्मक काम मिल गया। … मैं बार बार जा कर उन्हे तन्मयता से पेण्ट करते देखता रहा। बहुत कुछ ऐसा भाव था उनके मन में जैसे कोई महिला एक शिशु को दुलार रही हो।
