राजबली के साथ कुछ समय – बसुला और कलम का मेल


मुझे उनका काम स्वप्निल लगता है और उन्हे मेरी साहबी। हम दोनो जानते हैं कि एक दूसरे से केवल बोल बतिया ही सकते हैं। आपस में मिलने का आनंद ले सकते हैं। न वे मेरा काम कर सकते हैं न मैं उनका।

राजबली से मुलाकात


राजबली दसवीं आगे नहीं पढ़े। उसके बाद ममहर बाजार में किराने की दुकान खोली। पर उनके बब्बा को यह पसंद नहीं था कि घर से दूर राजबली पुश्तैनी धंधे से अलग काम करें।

1941 से 2021 – अनिरुद्ध कर्मकार से राजबली विश्वकर्मा


मैं ‘गणदेवता’ जैसे किसी दस्तावेज सृजन का स्वप्न तो नहीं देखता; पर अपने जीवन की दूसरी पारी में गांव में रहने के कारण यह तो मन में है कि पचास साल से हुये ग्रामीण बदलाव को महसूस किया जाये और लेखन में (भले ही ब्लॉग पर ही हो) दर्ज किया जाये।

मचिये के लिये मिला राजबली विश्वकर्मा से


राजबली का परिवार अलाव जला कर कोहरे में गर्माहट तलाशता बैठा था। आकर्षक मूछों वाले राजबली एक मोटे लकड़ी के टुकड़े को बसुले से छील भट्ठा पर काम करने वालों के लिये खड़ाऊँ बना रहे थे।