मैं बरसी का कार्यक्रम अटेण्ड करने गया था। अनुराग पाण्डेय बुलाने आये थे। अनुराग से मैं पहले नहीं मिला था। उनके ताऊ जी का देहावसान हुआ था साल भर पहले। आज बरसी थी। भोज का निमन्त्रण था।
मैं सामान्यत: असामाजिक व्यक्ति हूं। मेरी पत्नीजी (गांव में बसने के बाद) काफी समय से कह रही हैं कि अपना नजरिया बदलूं मैं। आज भी लगी रहीं कि अनुराग के यहां चला जाऊं। शाम होते होते दो तीन बार कहा। संयोग से अशोक (मेरा वाहन चालक) भी आ गया था। अत: मेरे पास कोई बहाना नहीं बचा, न जाने का।
अच्छा किया जो वहां गया। वे पाण्डेय लोग मूलत: इस गांव के नहीं हैं। पिछली शती के प्रारम्भ में वे नवासे में (विवाह में बेटी-दामाद को गांव में बसाने का उपक्रम) यहां आये। आये हुये एक परिवार से अब तीन-चार घर हो गये हैं। अधिकतर लोग कलकत्ता,बंगलोर, बम्बई, दिल्ली आदि जगह पर रहते हैं। संतोष पांडेय (जिनके पिताजी की बरसी थी) भी बाहर ही रहते हैं। बरसी के लिये गांव आये थे। दिलीप मिले। वे मुझसे पहले वाराणसी में मिल चुके हैं, जब मैं वाराणसी रेल मण्डल में अपर मण्डल रेल प्रबन्धक था। दैनिक जागरण में कार्य करते हैं। गांव से ही आते जाते हैं। अपने घर में निर्माण कार्य करा रहे हैं। वे इस बात से प्रसन्न हैं कि पास में वारणसी-हंड़िया हाईवे छ लेन का होने जा रहा है। रेल लाइन का भी दोहरीकरण और विद्युतीकरण हो रहा है। सन 2019 तक यह सब हो जायेगा। तब यातायात के इतने साधन हो जायेंगे कि बनारस शहर की बसावट यहां जगह खोजने लगेगी।
अभी भी दिलीप को अपनी मोटर साइकलसे बनारस रोज आना-जाना खलता नहीं। “जो भी यातायात की रुकावट है, मोहन सराय और बनारस कैण्ट के बीच ही है; गांव से मोहन सराय तो आधा घण्टा भर लगता है।”
रमाशंकर पाण्डेय जी मिले। वे कलकत्ता में प्लाई का व्यवसाय करते हैं। साल में दो-तीन बार गांव आते जाते हैं। यहां अपने रहने की पुख्ता व्यवस्था बना रखी है। एक कमरे में किचनेट भी है। गैस चूल्हा, बर्तन और भोजन सामग्री; सब। वे बहुत प्रसन्न थे मेरे विषय में – “गांव में एक और पांड़े बढ़े!” कलकत्ता में रहते हुये मेरा फ़ेसबुक पर लिखा बहुत चाव से पढ़ते हैं।
वैसे इस गांव से सम्बद्ध लगभग 50-60 लोग, जो अलग अलग स्थानों पर हैं; मेरे लेखन से जुड़ाव पाते हैं। इस माध्यम से गांव से उनकी कनेक्टिविटी बनी रहती है।

खैर, असल प्रसन्नता मुझे तिरानबे साल के मदन मोहन पाण्डेय जी से मिल कर हुई। वे अभी भी अच्छी सेहत में हैं। बिना चश्मे के पढ़ लेते हैं। उनकी आवाज में कोई शिथिलता नहीं। अलबत्ता; अब चलने में कुछ दिक्कत होने लगी है। ज्यादा चलने पर कमर दोहरी होने लगती है।
अपनी जवानी में वे मुगदर भांजते थे। नाल उठाते थे। एक कोने में पड़ी नाल भी देखी मैने। उस पर उनका नाम भी खुदा है। मैने उनका चरण स्पर्श किया और कहा कि उनके पास आया करूंगा। गांव का पुराना इतिहास उनसे बेहतर कौन बता सकेगा?
चलते समय उन्होने पुरानी बात बताई – “गांव में उस समय मोटा अनाज ही होता था। जवा, बैर्रा। कोई मेहमान आता था तो सब खुश होते थे कि गेंहू खाने को मिलेगा। … भोज आदि में हर घर में एक एक धरा (4 सेर) अनाज पिसता था जांत पर। उसको जुटा कर भोज की पूड़ी बनती थी”।
मदन मोहन जी को चरण स्पर्श कर लौटा तो मन में यह संकल्प था कि कागज कलम ले कर उन्के पास गांव के अतीत के नोट्स अवश्य लूंगा। क्या पता, वह नोट्स ही मुझे जानदार रचनाकार बना दें। न भी बनायें, तो भी, ब्लॉगरधर्मिता का तो निर्वहन होगा!

नमस्कार,
मेरा एक आग्रह और है: अगर हो सके तो मोबाइल या कैमरे में रिकॉर्ड कर लीजिये इंटरव्यू!
हो सके तो फेसबुक पर सब से राय या प्रश्न मांग सकते है पूछने के लिए, जो आप सभी बड़ो से पूछ सकते है
छोटे बडे सवाल तो मेरे पास भी बहुत है पूछने के लिए. मैंने एक अधूरी सी लिस्ट बना रखी है आप और आप के पिता जी के लिए जो अन्य लोगो के इंटरव्यू के उपयोग में आ सकती है, पूरा होने पर आप को भेजूगा!
मनोज
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नमस्कार,
यह जो ब्लॉग में सब से उप्पर नया फोटो डाला है वह कमल का है. अदभुत !!! कोई शब्द नहीं है, देख कर लगा जैसे पुराने जमाने में पहुच गया हु, यह सब धीरे धीरे समय के साथ बदल जायेगा, बस यह ही यादें रह जाएँगी. कभी गांव ऐसा था, यह काम पहले ऐसे होता था, लोग ऐसे रहते थे, और अब सब बदल रहा है! कही पर कोई रिकॉर्ड नहीं है, सिर्फ कल्पना बन कर रह जायेगा! वह भी एक पीढ़ी के बाद सब भूल जायेगे! जैसे अभी सब भूल गए है पिछली कई बरसो पुरानी बातें!
मेरा एक आग्रह है, कृपया 3-4 फोटो क्लिक करें मल्टीप्ल एंगल से. कुछ क्लोज अप और कुछ दूर से, आसपास का माहौल भी नज़र आये तो और अच्छा
हो सके तो पूरे गांव को रिकॉर्ड करिए कैमरे में, जो के आप कर ही रहे है. यह भी अछी यादें बन कर रह जायेगे!
वह गलियां, खेत, पुराने अवशेष, तालाब, गांव के घर, मिटी का चूल्हा, कुआँ, बेल गाड़ी, चौहराह!
शार्ट वीडियोस भी बना सकते हैं.
मन तो मेरा भी बहुत है की गांव का और सभी बडे बूडों का रिकॉर्ड बनाया जाये पर समय नहीं है, काम में वयसत है और समय है की निकाला जा रहा है. आप के माध्यम से अपना काम करवाना चाहता हु, वैसे भी में हर जगह पर जा नहीं सकता हु!
मनोज
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समय के पीछे जाने का भी अपना आनन्द है ।
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