गुन्नीलाल मेरे जीवन की दूसरी पारी के सखा हैं। वे स्कूल में अध्यापक थे। अपने पिता के अकेले पुत्र हैं, सो खेती किसानी बंटी नहीं। स्कूली अध्यापक की पेंशन और गांव में खेती का बैक-बोन – सब मिला कर गुन्नी ग्रामीण परिवेश में सम्पन्न कहे जा सकते हैं। उनमें और उनके परिवार में मध्यवर्गीय सुरुचियां भरपूर हैं और शहरी मध्यवर्ग के दुर्गुण कत्तई नहीं हैं।
गुन्नीलाल जी पढ़ते रहते हैं, और देश परदेश के विभिन्न मुद्दों पर जानकारी और राय रखते हैं। घर की सजावट और साफसफाई को ले कर उनका पूरा परिवार सजग है। ऐसा सामान्यत: गांव के घरों में देखने में नहीं आता।
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