कड़े प्रसाद दिल्ली हो आये; “मोदी के बगलइ में ही रहत रहे हम”


कड़े प्रसाद जैसा हुनरमंद आदमी कहीं भी रहे, अपने लिये काम और रोजगार तलाश ही लेगा। पूंजी भी ज्यादा नहीं चाहिये – कुछ बर्तन, गैस-चूल्हा और नमकीन के पैकेट बनाने के लिये पॉलीथीन की पन्नियां। बस।

मातृ ऋण चुकाया नहीं जा सकता


उस धनी का कहना भर था कि उस मंदिर की नीव का पत्थर मिट्टी में धसकने लगा। मंदिर एक ओर को झुकने लगा। वह झुका मंदिर एक वास्तविकता है।

आज तो कोहरा घना है – प्रतिनिधि चित्र


आज तो मन है बिस्तर में ही चाय नाश्ता मिल जाए। उठना न पड़े। बटोही (साईकिल) को देखने का भी मन नहीं हो रहा। आज तो कोहरा घना है। यह प्रकृति की व्यक्तिगत आलोचना है! पता नहीं बिसुनाथ का क्या हाल होगा। वह तो आपने एक कमरे के घर में बाहर पुआल के बिस्तर परContinue reading “आज तो कोहरा घना है – प्रतिनिधि चित्र”

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