यह भी किसान हैं, इनको भी सुना जाये


किसानी के आइसबर्ग का टिप है जो अपने ट्रेक्टर ले कर दिल्ली दलन को पंहुचा है और घमण्ड से कहता है कि छ महीने का गल्ला लेकर धरना देने आया है। यह गांव वाला बेचारा तो छ महीने क्या, छ दिन भी दिल्ली नहीं रह पायेगा।

विकास चंद्र पाण्डेय, मधुमक्खी पालक


छत्तीस क्विण्टल शहद का उत्पाद। एक कच्ची गणना से मैं अनुमान लगा लेता हूं कि गांव के रहन सहन के हिसाब से यह सम्मानजनक मध्यवर्गीय व्यवसाय है। एक रुटीन नौकरी से कहीं अच्छा विकल्प। और भविष्य में वृद्धि की सम्भावनायें भी!

आज की ब्लॉग पोस्ट – शैलेंद्र चौबे की नयी दुकान


छोटे स्तर पर ही सही; एक सवर्ण नौजवान की सरकारी नौकरी की मरीचिका से पार निकलने की कोशिश बहुत अच्छी लगी!

धूप सेवन और चोर गिलहरियों की संगत


सागौन के पेड़ के ऊपर एक गिलहरी दम्पति मोजे को ऊपर की ओर खींच रहे थे। वे हटाने पर आसपास चींचीं करते रहे, मानो उनकी सम्पत्ति हो और हम उसे जबरी हथियाने जा रहे हों। 😆

अशोक शुक्ल ने दैनिक पूजा का लाभ बताया, और वह बड़ा लाभ है!


अशोक पण्डित ने कहा कि शोक और दु:ख अलग अलग मानसिक अवस्थायें हैं। जहां दु:ख का मूल अभाव में है; वहीं शोक अज्ञान से उपजता है – अज्ञान प्रभवं शोक: (गरुड़ पुराण)।

गिरीश चंद्र त्रिपाठी जी और वामपंथ से टकराव


त्रिपाठी जी ने वामपंथ से टकराव के अनेक मामले और अनेक लोगों से मिलने के प्रसंग मुझे बताये। उनसे मिलने पर लगा कि ये वामपंथी लिबरल-वाम एजेण्डा को बड़े शातिराना ढंग से शिक्षण संस्थानों और समाज में घोलने का काम करते हैं।