मोहनलाल, सूप वाला

शंकर जी के मन्दिर के पास जमीन पर बैठा वह व्यक्ति बड़ी दक्षता से सूप बना रहा था। पास में उसकी साइकिल पर सूप की चपटी चटाइयाँ कैरियर पर जमाई हुई थीं। उन्ही में से कुछ वह जमीन पर उतार कर मोड कर और तांत से सही जगह बाध कर सूप का आकार दे रहा था।

मैने अपनी साइकिल रोक दी। सवेरे की साइकिल-सैर में साइकिल चलाना महत्वपूर्ण है, पर उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है आस-पास का गांव-परिवेश देखना समझना। यह सूप बनाने वाला व्यक्ति मेरे लिये अनूठा था।

mohanlal soop wala
सूप बनाने वाला, मोहनलाल

नाम बताया मोहन लाल। यहीं दो किलोमीटर दूर भोगांव का रहने वाला। घूम घूम कर सूप बेचता है। कल दीपावली के बिहान में भोर में लोग पुराने सूप को फटफटा कर घूरे पर फैंकते हैँ। “दलिद्दर खेदने (दारिद्र्य भगाने) को। उसके साथ ही ग्रामीण लोगों को नये सूप की दरकार होती है। मोहनलाल उसी के लिये सूप ले कर निकले हैं।

मोहनलाल की साइकिल पर तरतीबवार जमा थी सूप की बुनी हुई दफ्तियाँ।

कैसे बनाते हो?

“सरपत की डण्डी यहां नहीं मिलती। कानपुर से आती है। उन्हे बान्धने के लिये तांत बनारस से। किनारे पर बांस की पतली छीलन लगती है – वह यहीं गांव-देहात में मिल जाता है। घर में औरतें सूप की दफ्ती बुनती हैं। घूम घूम कर बेचते समय मैं उनसे सूप बनाता जाता हूं – जैसे अब बना रहा हूं।”

आमदनी कैसी होती है?

“बारहों महीना बिकता है। लोग मुझे सूप वाले के नाम से ही जानते हैं। लड़के बच्चे तो यह काम किये नहीं। बम्बई चले गये। पर मुझे तो यही काम पसन्द है। इसी के बल पर अपना खर्चा चलाता हूं। बचत से एक बीघा जमीन भी खरीद ली है। दो बिस्सा में घर है। मेरे गांव आइये। पक्का मकान है। दरवाजे पर चांपाकल है। यही नहीं, बचत से तीन लाख की डिपाजिट मेहरारू के नाम जमा कर ली है। उतनी ही मेरे नाम भी है। लोग पैसा ठीक से कमाते नहीँ। जो कमाते हैँ वह नशा-पत्ती में उड़ा देते हैं। ठीक से चलें और मेहनत करें तो यह सूप बेचने का काम भी खराब नहीँ।”



गजब के आदमी मिले सवेरे सवेरे मोहनलाल। आशा और आत्मविश्वास से परिपूर्ण। कर्मठता और जिन्दगी के प्रति सकारात्मक नजरिये से युक्त। इस इलाके के निठल्ले नौजवानों के लिये एक मिसाल।

मैने कहा – जरूर आऊंगा उनके गांव उनका घर देखने। यह भी देखने कि सूप की दफ्ती कैसे बनाती हैं महिलायें।

मोहनलाल बोले – “जरूर। अभी कार्तिक पुन्नवासी को मेरे गांव में बहुत बड़ा मेला लगता है। तब आइयेगा।”

मोहनलाल ने मेरा सूप मेरी साइकिल के करीयर पर ठीक से बांध दिया तांत के धागे से।

एक सूप की कीमत पूंछी मैने। सत्तर रुपये। एक सूप उनसे खरीद लिया। ले जाने के लिये तांत से वह सूप मेरी साइकिल के कैरियर से बान्ध भी दिया मोहनलाल ने। बोले – ठीक है, सही से चला जायेगा आपके घर तक।

मोहनलाल से मिल कर आज का मेरा दिन बन गया। एक आशावादी और कर्मठ व्यक्ति से मुलाकात पर कौन न प्रसन्न होगा। आपको मोहनलाल मिलें तो आप भी होंगे!

मोहनलाल, सूपवाला।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

3 thoughts on “मोहनलाल, सूप वाला

  1. वाह आपने तो सर समा बांध दिया। रियल पिक्चर बहुत अच्छी हैं। शानदार स्टोरी के लिए आपको धन्यवाद।

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  2. मेहनतकश और आशावादी इंसान के लिए जीवन उतना कठिन भी नही है। मोहनलाल जैसे व्यक्ति सचमुच में आदर्श ही हैं, नवयुवकों के लिए।

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