सवेरे दूध लेने जाना होता है। पूरी एहतियाद बरतते। आज आगे बढ़ कर किराने की दुकान तक चला गया। सवेरे साढ़े छ बजे कोई चहल पहल नहीं थी। किराना वाले अपनी दुकान के बाहर बैठे थे। सामान उनकी दुकान में कुछ मिला, कुछ नहीं मिला। नवरात्रि में बिक गया तो इनवेण्टरी भरने के लिये बनारस जाना नहीं हो पाया। बोले – “चार पैसा कम कमायेंगे, पर जान सांसत में कौन डाले बनारस जा कर”।
यहां भी कोरोना के केस सुनाई पड़े हैं?
“नहीं। बाजार में तो नहीं, आसपास के गांवों में तो हैं। कल ही फलाने गांव का एक पैंतीस साल का लड़का सांस की तकलीफ में तड़फ तड़फ कर मर गया। बाहर से आया था। घर वाले कहीं ले भी नहीं जा पाये इलाज के लिये। कोई इलाज नहीं हुआ। पर कोरोना ही रहा होगा।”
आप तो सकुशल हैं न?
“हां, हम तो बच कर रह रहे हैं। दुकान भी चल रही है। लस्टम पस्टम। लॉकडाउन नहीं है तो नून-रोटी का इंतजाम हो जा रहा है। परिवार में पांच लोग हैं। तीन बच्चे और दो हम लोग। काम चल रहा है।”
कोरोना का टीका लगवाया?
“नहीं। और लगवाने का विचार नहीं है। लगवाने पर लोग बीमार हो जा रहे हैं। और लगवाने पर भी तो कोरोना हो रहा है!”
ऐसा नहीं है। मुझे ही देख लें। मैंने और मेरी पत्नी ने दोनो टीके लगवाये हैं। हमें तो कोई तकलीफ नहीं हुई। कोई बीमार नहीं हुआ। – मैंने कहा।
“आपकी तो इम्यूनिटी अच्छी है। आप साइकिल चलाते हैं। व्यायाम करते हैं। हम लोगों का क्या, दिन भर दुकान पर रहना होता है।”
इम्यूनिटी? डाइबिटीज, हाइपर टेंशन, थायराऑइड… अनेक चीजों की सवेरे छ और शाम को तीन गोली रोज लेता हूं। फिर नींद की उचट जाने की समस्या अलग। आपको भी इतना है?
वे दुकान वाले लजा गये। बोले – “नहीं वैसा तो नहीं है। ईश्वर की कृपा से कोई दवाई नहीं लेनी पड़ती। नींद तो सात घण्टा कस कर आती है। जगाने पर भी जागता नहीं हूं।”
तब तो आप टीका लगवा लीजिये। टीका न लगवाने पर 1000 में से एक को कोरोना हो रहा है और लगवाने वाले को दस हजार में दो या तीन का औसत आ रहा है। … फिर मान लीजिये कि टीका कुछ नहीं डिस्टिल वाटर ही है। लगवाने में घाटा क्या है। मुफ्त में ही तो लग रहा है! मैंने तो ढ़ाई सौ रुपया देकर लगवाया है। – मैंने दुकानदार वाले सज्जन को जोश दिलाया।
उन्हें समझ आया कुछ कुछ शायद। बोले – “देखिये, दो चार दिन में मौका देख कर लगवाता हूं। वैसे इस दौरान आपने इतनी बात की। हालचाल पूछा। यह बहुत अच्छा लगा। वर्ना आजकल का टाइम तो बड़ा ही मुश्किल है।”

उनका चित्र खींचा तो बोले – “अरे, फोटो का इस्तेमाल मत करियेगा।” मैंने उन्हे भरोसा दिलाया कि उनकी आईडेण्टिटी जाहिर नहीं करूंगा। यद्यपि पूरी मुलाकात में मुझे ऐसा कुछ भी लगता जो अनुचित या विवादास्पद हो। उनकी तरह बहुत से सामान्य आदमी, अपनी आशंकायें, समस्यायें लिये हैं। उनके जैसे बहुत से लोग जैसा चल रहा है चलने देना चाहते हैं। भले ही लस्टम पस्टम चले, पर लॉकडाउन न होने से नून-रोटी तो चल रही है। उनके जैसे बहुत से लोगों को कोरोना टीके को ले कर भ्रांतियां और पूर्वाग्रह हैं।
आशा है, वे टीका लगवा लेंगे!
वैसे तो टीका पर टीका टिपण्णी करना ठीक नहीं लगता, पर टीका शब्द के इस रूप की व्युतपत्ति और प्रयोग के बारे में कुछ सुगबुगाहट दिमाग में हुयी तो सोचा,… किसी महत्वपूर्ण प्रयोजन पर जाते समय भी माथे पर टीका लगाया जाता है, बचपन की याद है माँ की , बड़ी डालते समय भी पांच बड़ी पहले सिन्दूर से से टीकी जाती थी. कोहबर भी टीका जाता है, और उसी का शायद एक बड़ा रूप है , हाथ का छापा थापा कोहबर के बाहर, शादी के घर के बाहर और ग्रहण लगने पर गाभिन गाय पर भी हाथ का थापा लगाया जाने की बात याद है। यह टीका और थापा /छापा दोनों ही शायद सुरक्षा के लिए ही जाता था , क्या पता इसी से ये अर्थ प्रयोग में आया हो।
इंजेक्शन के लिए तो सूई शब्द का प्रचलन है पर वैक्सीन के लिए टीके का,
वैसे वैक्सीन का प्रयोग उन्नीसवीं सदी वर्षों में हमारे यहाँ शुरू हुआ, टीका शब्द तभी आया या बाद में , पता नहीं।
टीका, क्वारंटाइन या इस इस तरह की चीजों के प्रति थोड़ी अनिक्षा नयी बात नहीं, पुणे में प्लेग कमिश्नर रैंड की कुछ विवाद के कारण ह्त्या भी हुयी थी.
मुझे लगता है की शायद विद्वत जन इस पर आगे भी चर्चा करेंगे।
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This is how “A wise” person impacts the society . You need to be an enabler and that’s what you did , Thanks GD Sir . Imagine , if every Indian Villages has one or two mentors like Mr. GD , This country will not be the same , it will be a much better place .
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अभी तो टीका लगवाना ही श्रेयस्कर है। बातचीत का यह प्रारूप प्रभावी लगा।
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