9 सितम्बर 2021:
उन्होने बताया कि सागौन के वृक्षों की भरमार है। शाल वन प्रारम्भ हो चुका है। भवानी भाई का ‘घना, ऊंघता, अनमना जंगल’ प्रेमसागर सामने देख रहे हैं। I wish he could have been a better writer and had knack of expressing himself; not merely being a pilgrim. पर आप प्रेमसागर नहीं हो सकते और प्रेमसागर आप नहीं हो सकते!
एक दिन के विश्राम के बाद प्रेम सागर सवेरे समय पर ही निकले होंगे, पर मैं कुछ अस्वस्थता के कारण उन्हे छ के आसपास फोन नहीं कर पाया। उनका ही रिंग आया सात बजे के बाद। उन्होने बताया कि 6-7 किलोमीटर चल चुके हैं। उन्हें कुछ खांसी आ रही थी। बोले कि कमरे में एसी था, उससे सर्दी लगी, जिसे बाद में उन्होने बंद कर दिया। आज पैंतीस किलोमीटर चलने का विचार था। उन्होने एक स्थान का नाम बताया जहां तक उन्हें पंहुंचना था।
मैंने वह क्षेत्र देखा नहीं है। ट्रेन से गुजरा भी होगा तो रात में निकल गया होगा। मैं आकलन करता हूं कि प्रेम सागर रीवा से दक्षिण की ओर चल रहे थे। विंध्य की पर्वत श्रेणी से सतपुड़ा की ओर। पर विंध्य कहां खत्म होता है और सतपुड़ा कहां शुरू, वह मुझे नहीं ज्ञात था। मैंने नेट पार सर्च करने की कोशिश की। यह भी पता करने की कोशिश की कि कोई अमेजन किण्डल पर रीवा-शहडोल-अमरकण्टक के ट्रेवलॉग मिल जाये। वह नहीं हुआ तो प्रवीण चंद्र दुबे जी से बात करने का प्रयास किया। वे भी भोपाल से इंदौर के रास्ते में थे। उनसे बात न हो पाई। एक एहसास यह था कि शायद नर्मदा विंध्य और सतपुड़ा की सीमा रेखा हैं। पर क्या वह सीमा रेखा दो देशों की सीमा रेखा सरीखी होती है या पहाड़ कभी आपस में गुंथे भी होते हैं?
खैर, बाद में जो जानकारी मिलेगी उससे ब्लॉग अपडेट किया जायेगा। फिलहाल तो प्रेम सागर जी के इनपुट्स ही थे मेरे पास। उन्हीं के आधार पर यह लिखता हूं।
करीब घण्टे भर बाद प्रेम सागर जी ने सिल्पार के टोंस हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन के चित्र भेजे। मैंने चेक किया तो यह बाणसागर परियोजना के दूसरे चरण की 15 मेगावाट की दो इकाइयों का स्थान था। यह रींवा नहर पर स्थित है।
जितनी प्रेम सागर जी से अपेक्षा थी, उससे बेहतर ही थे ये चित्र। धुधले नहीं थे।
वहां से वे आगे बढ़े। उन्होने तीन घण्टे बाद गोविंदगढ़ रेलवे स्टेशन के चित्र भेजे। स्टेशन की मेन प्लेटफार्म लाइन खुदी हुयी थी। व्यापक मॉडीफिकेशन का काम चल रहा था। यहीं एक घण्टा प्रेमसागर ने प्लेटफार्म पर आराम किया।
गोविंदगढ़ के बारे में पढ़ा कि यह रीवा के बघेल राजाओं की समर कैपिटल हुआ करती थी। वह इलाका – उनके भवन आदि शायद प्रेम सागर जी के रास्ते में पड़े नहीं। गूगल मैप पर एक कोठी और एक पुरानी चार पहिया गाड़ी के चित्र मिले। वहां की सीनरी के भी चित्र हैं। चित्र किन्हीं शशांक गुप्ता, क्षितिज मिश्र और रत्नेश वर्मा जी के लिये हैं। निश्चय ही मनोरम आरामगाह रहा होगा गोविंदगढ़! ये चित्र अच्छे हैं, अन्यथा उलूलजुलूल कपड़े पहने लड़कों और उनकी गर्लफ्रैण्डों के फोरग्राउण्ड के चित्रों की भरमार है! 😆
दिन में आगे कहीं एक हनुमान जी का मंदिर मिला। वहां प्रसाद के रूप में खिचड़ी मिली। वही प्रेमसागर का लंच हुआ। खिचड़ी का मिलना यह दर्शाता है कि हिंदुत्व में भी ‘लंगर’ जैसी प्रथा किसी न किसी रूप में उपस्थित है। उसका ऑर्गेनाइज्ड रूप नहीं बना है; पर है जरूर। इस तरह की लंगर प्रथा धर्म में ऑर्गेनाइज्ड तरीके से होनी चाहिये या नहीं, उसपर बतकही हो सकती है। ऑर्गेनाइज्ड रिलिजन के अपने घपले हैं। उसमें जड़ता आती है। पर मुझे लगता है कि लंगर की प्रथा सिक्खी से और दान/जकात की प्रथा इस्लाम से सीखने के बारे में विचार होना चाहिये।

आगे, बकौल प्रेम सागर रास्ता बहुत खतरनाक था। शायद सड़क हाईवे से हट कर इकहरी हो गयी थी। वह सर्पिल “जलेबी जैसी” सड़क थी। जरा सा फिसले नहीं कि खड्ड में गिर जाने का खतरा। सर्पिल सड़क से हट कर एक जगह पगड़ण्डी पकड़ी प्रेम सागर ने और पांच-सात किलोमीटर बचा लिये। शाम पांच बजे वे बाघवार रेस्ट हाउस पंहुच गये थे।
मैंने आज प्रेमसागर जी का पूरा रास्ता गूगल मैप पर देखा –

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
इस यात्रा मार्ग में गोविंदगढ़ रेलवे स्टेशन से बाघवार के बीच एक स्ट्रिप ऊंचाई और फिर घाटी की दिखती है। इसी इलाके को खरतनाक मार्ग कह रहे होंगे प्रेमसागर। शायद यह रींवा के पठार का छोर हो। शायद इससे सतपुड़ा की शुरुआत होती हो। मेरा भौगोलिक ज्ञान पुख्ता नहीं है। इसलिये मैं केवल अटकल ही लगा सकता हूं। बहरहाल मुझे भवानी प्रसाद मिश्र जी की कविता – सतपुड़ा के घने जंगल की याद आ रही है।

सतपुड़ा के घने जंगल।
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
झाड ऊँचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आँख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊँघते अनमने जंगल।

ऊँघते अनमने जंगल।
जितना मैं नेट पर रास्ता और प्रेमसागर के चित्र देखता हूं, उतना मुझे लगता है कि मुझे खुद वहां हो कर अनुभव लेना चाहिये था। तब मेरी अनुभूति, मेरा ज्ञान और मेरी समझ कहीं ज्यादा सघन, कहीं ज्यादा गहरी होती। लेकिन मैं वहां हो नहीं सकता। मैं कुछ अच्छी पुस्तकों को ढूंढ और टटोल सकता हूं। मुझे नर्मदा के आसपास और विंध्य के दक्षिणी भाग की बेहतर जानकारी चाहिये। जाने कहां से मिल सकेगी!
10 सितम्बर 2021:

आज सवेरे फिर मेरी तबियत खराब होने के कारण मैंने फोन नहीं किया। प्रेमसागर का ही आया। वे निकल लिये हैं और आज ब्यौहारी तक पंहुचने की योजना है। ठीक ठाक गति से चल रहे थे। एक चाय की दुकान पर रुकने जा रहे थे। मैंने उन्हें फिर नदी-नाले-झरने और वन्य दृश्य अथवा जो भी रोचक लगे उसके चित्र लेने को पुन: कहा। इस ब्लॉग कड़ी में सम्प्रेषण का मुख्य सूत्र चित्र ही हैं। उनके बिना मैं यात्रा की अनुभूति ही नहीं कर सकता। मैंने प्रेम सागर को चलते चलते वॉईस मैसेज देने को कहा, पर वह उनसे हो नहीं पाया। उनके लेखन की बजाय उनकी आवाज बेहतर कम्यूनिकेट करती है – यह बात वे ग्रहण नहीं कर पा रहे।
उन्होने बताया कि सागौन के वृक्षों की भरमार है। शाल वन प्रारम्भ हो चुका है। भवानी भाई का ‘घना, ऊंघता, अनमना जंगल’ प्रेमसागर सामने देख रहे हैं। I wish he could have been a better writer and had knack of expressing himself; not merely being a pilgrim. पर आप प्रेमसागर नहीं हो सकते और प्रेमसागर आप नहीं हो सकते! 😆
आप कृपया ब्लॉग, फेसबुक पेज और ट्विटर हेण्डल को सब्स्क्राइब कर लें आगे की द्वादश ज्योतिर्लिंग पदयात्रा की जानकारी के लिये। ब्लॉग – मानसिक हलचल ट्विटर हैण्डल – GYANDUTT फेसबुक पेज – gyanfb |
आप अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। प्रेमसागर जी की पीड़ा भी आप ले रहें हैं, संभवतः मानसिक रूप से। गूगल मैप से पूरा समझ आ गया, पूरी यात्रा का भी मानचित्र निकाला जा सकता है।
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जय हो! उस व्यक्ति की फिक्र रहती है. अगर वह स्वयं खूब प्लान कर चलने वाला होता तो न होती.
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रोचकता बढ़ती जा रही है।
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मानचित्र से समझने में और आसानी हो गयी , कविता और चित्र ने ब्लॉग में सुगंध भर दिया
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जय हो!
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