वन कर्मी प्रेम सागर जी को किरन घाटी, जहां से सड़क खराब होनी प्रारम्भ हुई थी, वहां से एस्कॉर्ट कर साथ साथ राजेंद्र ग्राम तक आये। उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते प्रेमसागर अभिभूत लगते हैं। उन्हीं की सहायता से वे यह यात्रा कर पहाड़ पार कर पाये। वर्ना रास्ता इतना खतरनाक था कि एक ओर पहाड़ और दूसरी ओर घाटी की गहरी खाई – कोई सपोर्ट ही नहीं था!
हृदय की बाईपास सर्जरी से आश्चर्यजनक रूप से बचे प्रेमसागर कल एक हजार मीटर ऊंचे मैकल को पार कर आये। पानी के बहाव और जगह जगह भूस्खलन से अवरुद्ध पहाड़ी मार्ग; जो कल दुपहिया वाहन के लिये भी बंद कर दिया गया था; को पैदल पर कर वे सीतापुर (अनूपपुर) से राजेंद्रग्राम पंहुचे।
उन्होने कहा कि अगर उन्होने पैदल द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा का संकल्प नहीं लिया होता तो वे कभी इस मार्ग से आते ही नहीं। वाहनों के लिये वैकल्पिक लम्बा मार्ग उपलब्ध है। किसी सैलानी की तरह उस मार्ग से वाहन द्वारा आते, इस ‘खतरनाक’ रास्ते से तो कतई नहीं।
लेकिन प्रेमसागर बताते हैं कि कल जब सीतापुर से चलने पर वन मिला था और यह समाचार कि वहां बाघ के पैरों के निशान मिले हैं और बाघ आसपास हो सकता है; तब भी उन्हे भय नहीं लगा था। “मन में सोच लिया कि बाघ तो चाहे अकेले हों या दस आदमी के झुण्ड में, वह जैसे व्यवहार करेगा वैसे ही करेगा। सब कुछ महादेव पर छोड़ दिया है तो क्या भय?! जिंदगी आज तक की होगी तो वह भी सही। जो महादेव चाहेंगे, वही होगा।” … महादेव के सम्बल पर चल रहे हैं प्रेमसागर और चलते चले जा रहे हैं।
छ साल पहले हृदय रोग से ग्रस्त वह व्यक्ति जो छ मीटर भी नहीं चल सकता था, आज पैदल मैकल पहाड़ चढ़ ले रहा है। यह चमत्कार ही है। प्रेम सागर कहते हैं कि अगर वे हृदय रोग से पूर्णत: उबरे न होते तो आज उनका हार्ट फेल हो गया होता! पहाड़ का रास्ता आगे पीछे आने वाला – अचानक मुड़ जाने वाला (अंग्रेजी के Z अक्षर की तरह टर्न का) – और सतत ऊंची होती धरती का था। नीचे देखने पर कुछ समतल नहीं, मात्र गहरी खाई दिखती थी। वैसी की ‘झांंई’ छूटने लगे और कमजोर हृदय वाले का दिल बैठ जाये।

जगह जगह भूस्खलन का नजारा था। छोटे बड़े पत्थर गिरे थे या गिर रहे थे। रास्ते में हनुमान जी का मंदिर मिला। पहाड़ की सबसे ऊंची जगह से लगभग दो-तीन किलोमीटर पहले। मंदिर में हनुमान जी की वृहदाकार, पंचमुखी, गेरू में लिपटी बड़ी बड़ी चमकदार आंखों वाली प्रतिमा थी। इस मंदिर के दोनो ओर ऊपर से अतिवृष्टि का जल वेग से ऐसे गिरा था कि अपने साथ पहाड़ की कई चट्टाने और मिट्टी धसका कर नीचे ले आया। यह चमत्कार ही था कि मंदिर बच रहा। मंदिर के आसपास तीन जगह सड़क पानी के तेज बहाव से क्षतिग्रस्त हो गयी। “मोटा मोटी एक महीने से यह भूस्खलन हो रहा है। तभी से सड़क रिपेयर का भी काम चल रहा है। सड़क बनती थी और फिर टूट जाती थी”।

मंदिर में उन्होने विश्राम किया। वहां उन्हे गुड़ और जल का प्रसाद भी मिला। सतत चढ़ रहे पहाड़ के यात्री के लिये यह प्रसाद भी अमृत तुल्य है।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |

पहड़ की चढ़ाई पर सड़क मार्ग को रिपेयर-रिस्टोर करने वाले कई मजदूर, कई यंत्र और अन्य कर्मी दिखे। एक ठेकेदार खान साहब से प्रेमसागर की बात भी हुई। खानसाहब ने बताया कि वे स्खलन की लगभग चार जगहों पर चौड़ी रीटेनिंग दीवार बनाने का काम कर रहे हैं। दीवार की चौड़ाई पांच फुट की बनाई जा रही है – भूस्खलन की पुख्ता रोक के लिये। उस दीवार में कहीं भी ईंट या मलबा नहीं लगा है। उनका काम चौबीसों घण्टे चल रहा है। काम जल्दी पूरा करने का दबाव है। पर काम के दौरान भी भूस्खलन कई बार हुआ है।

खान साहब भी प्रेमसागर की पैदल यात्रा पर आश्चर्य व्यक्त कर रहे थे। पर अलग थलग जगह पर इतनी ऊंचाई पर, संसाधनों की कमी के बावजूद कोई निजी उद्यमी चौबीस घण्टे काम करवा रहा है – यह भी आश्चर्य है। खान जैसों को देख कर भी एक राष्ट्रीय गर्व का भाव मन में आता है। उनका कार्य, उनका श्रम, उनकी एण्टरप्राइज तो कहीं कोई बोलता-बतियाता-प्रसारित भी नहीं करता। खान ने बताया कि सीमेंट और स्थानीय उपलब्ध पत्थर-गिट्टी-बालू का ही प्रयोग हो रहा है रीटेनिंग वाल बनाने में। बिना खड़े रहने की जगह के वह दीवार बनाना कठिन काम है।

पहाड़ और जंगल – दोनो अभूतपूर्व हैं। प्रवीण दुबे जी बताते हैं कि ये जंगल शाल-वन हैं। सागौन की तो प्रकृति होती है कि वह किसी अन्य प्रकार के वृक्ष को पनपने नहीं देता, पर शाल अपने साथ बाकी सभी प्रकार के वृक्षों-वनस्पति को सहअस्तित्व में साथ लिये चलता है – पूरी बायोडाईवर्सिटी के साथ। इस जंगल में बहुत वैविध्य है। और जंगल के बीच में रहते हैं गोण जनजाति के लोग। वे बहुत सरल हैं जिन्हे प्रकृति के साथ रहना भरपूर आता है। उनके गुणसूत्र में प्रकृति है। जंगल की वनस्पतियों की उन्हें बहुत जानकारी है। उन्ही के माध्यम से चिकित्सा का उनका जो अनुभूत-ज्ञान है, उसपर बहुत कुछ शोध किया जा रहा है पर बहुत कुछ किया जाना शेष है। सामान्य शहरी आदमी उनकी इन विविधताओं की सोचता ही नहीं। वह यहां से गुजरा तो बस गुजर जाता है। अनुभव करने या रुकने का उसके पास समय ही नहीं होता।

दस किलोमीटर खड़ी चढ़ाई चढ़ी प्रेमसागर ने। वह व्यक्ति जिसकी हृदय धमनियों में अवरोध रहा हो और जिसे बाईपास सर्जरी ही एकमात्र निदान बताया गया हो, वह इतना स्वस्थ हो जाये कि पैदल पहाड़ चढ़ जाये, अभूतपूर्व है। राजीव टण्डन जी बताते हैं कि हृदय की अवरुद्ध धमनियों का ब्लॉकेज खुलता तो नहीं है; पर शरीर की मृत्यु से जद्दोजहद करने की प्रवृत्ति कोलेटरल वेसल्स का निर्माण करती हैं जो अवरोध का मुकम्मल विकल्प बना देती हैं। प्रेमसागर जी के साथ वही हुआ होगा। पर वह भी तो चमत्कार में भी चमत्कार ही है। उसी को ही देवाधिदेव महादेव की कृपा कहा जा सकता है।
सबसे ऊंचे स्थान पर पंहुच कर प्रेमसागर को जो अनुभूति हुई, करीब 1000 मीटर के मैकल पर्वत पर चढ़ कर, उसके बारे में वे कहते हैं कि “लगा कि पहाड़ मेरे से छोटा पड़ गया”!

रास्ते में प्रेमसागर को कई झुण्ड बंदरों के मिले। लाल मुंह वाले मिले और काले मुंह वाले भी। एक बंदर का चित्र भी प्रेमसागर ने भेजा है। “बंदर खतरनाक थे। वह तो गनीमत थी कि मेरे पास छाता था, वर्ना मेरा बैग-झोला तो छीन कर तारतार कर देते, इस आशा में कि उसमें खाने की कोई सामग्री होगी”।

जंगली जानवरों की इज्जत करने की चेतावनी वाला वन विभाग का एक बोर्ड भी उन्हें रास्ते में दिखा। जिसमें लिखा था – “जंगली जानवर अचानक सड़क पर आ सकते हैं। इन्हें दुर्घटनाग्रस्त करना दण्डनीय अपराध है।” कुल मिला कर यह कि सड़क पार करने का राइट ऑफ वे (right of way) यात्री का नहीं जंगल के जीवों का है। बहुत कुछ उसी तरह कि रेल लाइन पार करने का अधिकार ट्रेसपासर्स को नहीं है। राइट ऑफ वे, लेवल क्रासिंग पर भी, ट्रेन का है, सड़क वाहन का नहीं। मुझे याद आता है कि अफ्रीका के किसी वन में गुबरैले बहुत होते हैं। वहां बोर्ड लगा है कि राइट ऑफ वे गुबरैलों (Dung Beetles) का है।

वन कर्मी प्रेम सागर जी को किरन घाटी, जहां से सड़क खराब होनी प्रारम्भ हुई थी, वहां से एस्कॉर्ट कर साथ साथ राजेंद्र ग्राम तक आये। उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते प्रेमसागर अभिभूत लगते हैं। उन्हीं की सहायता से वे यह यात्रा कर पहाड़ पार कर पाये। वर्ना रास्ता इतना खतरनाक था कि एक ओर पहाड़ और दूसरी ओर घाटी की गहरी खाई – कोई सपोर्ट ही नहीं था!
प्रेम सागर ने एक झरने का चित्र भी भेजा है। ऐसे कई झरने वहां तेज वेग से जल उत्सर्जित कर रहे हैं। इन्ही से भूस्खलन हो रहा है और यही स्रोत हैं नदियों के जल के। “इसी तरह का पानी करीब एक डेढ़ किलोमीटर के सड़क मार्ग में तेज वेग से गिर रहा था और बह रहा था।”

बाणसागर के डिप्टी रेंजर तिवारी जी के प्रति वे बहुत कृतज्ञ हैं। उनका परिवार राजेंद्रग्राम में रहता है। त्रिपाठी जी ने कहा कि भले ही रेस्ट हाउस में रहने की व्यवस्था है, प्रेमसागर उनके घर पर ही रुकें और एक दिन और उनके परिवार को उनके आतिथ्य का मौका दें। यहां राजेंद्रग्राम में वे तिवारी जी के परिवार के साथ ही उनके घर पर रुके हैं और कल भी रहेंगे। कल वे सोन नदी का उद्गम स्थल देखेंगे। “कल आपको उनकी उत्पति स्थल के चित्र भेजूंगा। उसके अलावा तिवारी जी ने बताया है कि एक और नदी (जुहिड़ा या जुआरी जोहिला नदी) का उद्गम पास में ही हुआ है। उसे भी देखने का अवसर मिलेगा।”
वन विभाग के लोगों की सहायता और उनके द्वारा मिले इज्जत सम्मान के लिये बारम्बार कृतज्ञता व्यक्त करते हुये जोड़ते हैं कि वे जब चले थे तो यह मान कर चले थे कि किसी पीपल के नीचे या किसी मंदिर में उन्हें रात गुजारने रहने का स्थान मिलेगा। भोजन का कोई ठिकाना न होगा। इस सब की तो उन्होने कल्पना भी न की थी। अब लगता है कि सहायता न मिली होती तो शायद यात्रा हो भी न पाती। लोग टिप्पणी आदि में देश के अन्य जगहों पर भी सहायता की बात लिखते हैं, उसे देख कर सम्बल और बढ़ता है। महादेव सहायता करते रहेंगे, यह यकीन है प्रेमसागर जी को।
पर महादेव बहुत डाईसी देव हैं। वे कब अपने भक्त की परीक्षा लेने लग जायें, कब पीपल के पेड़ या खुले आसमान की छत के नीचे उतार दें, उनका कोई भरोसा नहीं। अपनी पत्नी तक को उन्होने परीक्षा लेने में बक्शा नहीं। भक्त को अपनी प्लानिंग, अपनी तैयारी खुद करनी चाहिये, ऐसा मैंने प्रेमसागार जी को कहा।
महादेव का बैक-अप प्रोटेक्शन उनको भरपूर है – यह तो दिखता है; पर महादेव यह भी कहते होंगे कि बच्चा, कदम तो तुझी को आगे बढ़ाना है! 😆
हर हर महादेव! जय हो!
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शाल और सागौन, बोसॉन और फर्मिआन। यह भी एक नया तथ्य पता चला। बाबा ऊपर हैं, भक्त नीचे, यात्रा पूरी होगी, निष्कंटक।
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मुझे भी नया नया रोज पता चल रहा है!
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यात्रा जो किसी कथानक की तरह हो गई है आस्था के आंचल के साथ कुछ कुछ थ्रिलिंग और scary होने लगी है। इंसानी जज्बे और प्रकृति के चैलेंजेज के बीच सीधा मुकाबिला! पद यात्रा में पर्वत दीवार बनकर खड़े हो जाएंगे और झांई आ जाये ऐसी स्थिति में ला खड़ा कर देंगे, सोचा न था। विध्नों को पार कर प्रेमसागर जी ज्यातिर्लिंग के दर्शन करते और कराते रहें कुछ इस तरह का इंतजार……जय हो!💐
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प्रेम जी कहते हैं कि सब कुछ महादेव पर छोड़ दिया है…
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जोहिला नदी सर।
जैसे आपको पहले एक ट्वीट के रिप्लाई में लिखा था कि सोन नद हैं और नर्मदा नदी। सोन एवं नर्मदा का विवाह होना था। नर्मदा ने अपनी सखी जोहिला को सोन की तैयारी देखने भेजा। जोहिला के पास ढंग के कपड़े न थे तो अपने दिए। जोहिला गई। सोन उस पर ही मोहित हो गए। नर्मदा ने जब देखा कि बहुत देर हो गई तो वो स्वयं देखने गई और ये सब देखकर जोहिला को लात मारी जिससे वो कुछ कोस दूर जाकर गिरी। अमरकंटक में जोहिला का उद्गम कुछ नीचे से है। नर्मदा नाराज हो पश्चिम दिशा में बहने लगी। सोन से विपरीत। थोड़े-मोड़े परिवर्तन के साथ ये कहानी है नर्मदा, सोन और जोहिला की।
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धन्यवाद शैल प्रिया जी!
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😀 शैलेंद्र पंडित सर। प्रिया अर्धांगिनी हैं। तो आपका दिया धन्यवाद उनको भी प्रेषित कर दूंगा।
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जय हो! 🙏
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आदरणीय दिनेश कुमार शुक्ल जी, फेसबुक पेज पर –
शिव प्रिय मेकल शैल सुता सी।सकल सिद्धि सुख संपति रासी।। (मानस)
हर हर महादेव।
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ट्विटर पर बदनाम शायर @BadnamShayar1 जी की टिप्पणी – हम लोग साल लिखते हैं शाल को। यह विष्णुप्रिय वृक्ष, महात्मा बुद्ध का बिछौना था जन्म के समय । सबसे धीमी गति से बढ़ता है। रेलवे मे इस लकड़ी का प्रयोग तो बहुत ही होता है।
याद आया कि अभी देहरादून दिल्ली एक्स्प्रेस वे बनाने के लिए गणेशपुर के पास 1500 साल वृक्ष काटे जाने वाले हैं ।
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उस पर मेरा प्रत्युत्तर – शानदार व्यक्ति हैं आप बदनाम शायर जी। अनाम हैं आप वर्ना प्रेमसागर यात्रा ब्लॉग पोस्ट लेखन में आपसे जुगलबंदी की जाती! मैं बहुत समय देता हूं इधर उधर से इनपुट्स लेने में! 🙂
बकिया, टिप्पणी ब्लॉग पर सीधे करें तो और अच्छा हो!
ट्विटर क्षणभंगुर है। ब्लॉग पर कहा/टिपेरा दीर्घजीवी होता है!
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जय हो मैकल सुता माँ नर्मदा मईया की
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🙏
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