एक जगह एक शिवलिंग जैसा कुछ दिखा हाईवे के किनारे एक चबूतरे पर। चबूतरे पर उस ‘शिवलिंग’ के चारों ओर वृत्ताकार नहीं, वर्गाकार पानी निकलने का रास्ता था। पानी निकलने का मार्ग उत्तर दिशा में नहीं, पूर्व की ओर था। कोई भी शिवलिंग देखते समय आजकल विश्वेश्वर मंदिर और ज्ञानवापी की याद हो आती है। यह अजीबोगरीब ‘शिवलिंग’ देख कर मेरे मन में एक ब्लॉग पोस्ट का हेडिंग फ्लैश किया – बाबा मिल गये।
अगर वह शिवलिंग होता तो वह छोटा-मोटा स्कूप हो गया होता। पर मैंने साइकिल रोक कर जब ध्यान से वह देखा तो उसमें पूर्व की तरफ एक गवाक्ष नजार आया। गवाक्ष जिसमें दिया रखा जा सकता हो या किसी देवी-देवता के लिये अक्षत-फूल रखा जाता हो। फिर भी वह क्या था, यह मेरे लिये अभी कंफ्यूजिंग था।


पास की एक इमारत, जो मंदिर नुमा चीज थी, की ओर जा कर मैंने किसी व्यक्ति से पता करने का प्रयास किया। वहां एक साधू फर्श धो रहा था। उससे पूछा – “वह चबूतरे पर क्या है? शिवलिंग है?“
उस बूढ़े साधू ने उत्तर दिया – आंधी आइ रही। धूल अऊर खरपतवार भरि ग रहा। सबेरे सवेरे धोये परत बा (आंधी आई थी। धूल और पत्तियों से फर्श बहर गया था। सवेरे सवेरे सफाई करनी पड़ रही है।)

यह साफ था कि बुढ़ऊ ऊंचा सुनते हैं। उन्होने अंदाज से मुझे उत्तर देना शुरू कर दिया था। मैंने उनके कान के पास जा कर जोर से अपना प्रश्न दोहराया। तब उनका उत्तर मिला – “ऊ जूतिया हौ। मेहरारुन क थान। संकर जी नाहीं। संकर जी त इहाँ हयेन ( वह जूतिया है – जूतिया माई। शंकर जी का स्थान नहीं। शंकर जी तो मंदिर में हैं)।”
मंदिर के अंदर जा कर देखा। हनुमान जी का मंदिर था। गेरू-तेल में लिपटी आदमकद हनुमान जी की प्रतिमा। उसी के बगल में एक दीर्घवृत्ताकार स्थान में शिवलिंग और नंदी थे। मंदिर की दीवार पर पूरी हनुमान चालिसा लिखी थी और दीवार का रंग-प्लास्टर उखड़ रहा था। यह तो स्पष्ट हो गया कि हनुमान जी और शंकर जी की कृपा से मंदिर बन जरूर गया है, पर उसपर लक्ष्मी जी की पर्याप्त कृपा नहीं बरस रही। इतने सारे मंदिर बन गये हैं कि लक्ष्मीजी अपने लिमिटेड फंड में कितना अलॉकेट करें इस जैसे मंदिर को।

मेरे चित्र लेते देख कर बाबाजी बोले – कुछ दान भी करिये।
सवेरे मैं पर्स ले कर नहीं निकलता। मोबाइल से पैसा लेने की सुविधा बाबाजी के पास तो हो नहीं सकती थी। मैंने अपनी असमर्थता जताई तो बाबा जी से फिर भी जोर मारा – “दसई-पांच रुपिया दई द (दस पांच रुपया ही दे दीजिये)।”
वह मैं कर नहीं सकता था। उनसे कहा कि अगले दिन पर्स ले कर आऊंगा तो दूंगा। फिर बाबाजी से उनका परिचय पूछा। उन्होने बताया कि उनका नाम है – नागा बाबा जीवन गिरि। जूना अखाड़ा। हनुमान मंदिर। बनारस। पच्चीस साल से यहां पर हैं। तब से जब यह सड़क नहीं होती थी। आगे बहुत जमीन थी।

जूना अखाड़ा के नागा साघू बहुत से मंदिरों में इधर दिखते हैं मुझे। लगता है जूना अखाड़ा थोक में साधुओं को सधुक्कड़ी का डिप्लोमा देता है और बाद में उन सबको इधर उधर छोटे-बड़े मंदिरों में खाने कमाने की फ्रेंचाइज भी प्रदान करता है। अभी भी इतना धरम करम समाज में शेष है कि एक बड़ी जमात नागा साधुओं की – जो नग्न रहने की बजाय गमछा या भगई लपेटे रहते हैं और गले में भांति भांति की कौड़ी-रुद्राक्ष-तुलसी आदि की माला आदि का मेक-अप साधे रहते हैं; आसानी से खप गयी है। इन नागा साधुओं के ग्रामीण परिवेश में सोशियो-कल्चरल-रिलीजियस कण्ट्रीब्यूशन पर एक शोध कार्य किया जा सकता है। शायद किसी बंधु ने किया भी हो।

कभी मैं भी आसपास के आठ दस नागा बाबाओं से अपने आदान प्रदान के आधार पर कुछ लिख सकता हूं। रिटायरमेण्ट के बाद पहला साधू जो गांव में मिला था – मंगल गिरि – वह भी जूना अखाड़ा का था। उसने मुझे चिलम में गांजा भर पीने का पहली बार डिमॉन्स्ट्रेशन किया था। अब वह यहां दीखता नहीं। या यह भी हो सकता है, मैंने घूमना कम कर दिया है। … निकलो जीडी, घूमो और नागा बाबाओं का ही सही, कुछ तो अध्ययन करो।
पांडे जी, आपका कहना ठीक है ,थोक क भाव बाबा पैदा हो रहे है।कानपुर के पास बिठूर मे थोक के भाव मांगने वाले बाबा रहते है/दिन मे भीख के नाम पर पैसे मांगते है खाने पीने की चीजे बर्तन कपड़े चादरे मांगने आते है और रात मे देशी दारू और मुर्ग पार्टी चलती है डेरे पर / मुझे जीवन मे केवल एक नारायण स्वामी मिले जो वास्तव मे साधु थे और साधु धर्म का पालन करने वाले सच्चे साधक लगे/साल मे केवल एक बार ही घर मे भिक्षा करने के लिए हमेशा दोपहर लंच के लिए आते थे और वो कभी भी हमारे घर मे रुके नहीं/मै जर्मनी मे काफी समय रहा लिहाजा जनेऊ मै धारण नहीं करता था इसका कारण यह था की जर्मनी मे जनेऊ मिला नहीं बाद मे जब भारत आया तो जनेऊ की आदत छूट सी गयी थी/एक बार स्वामी जी का ध्यान मेरे जनेऊ पर गया /उन्होंने कहा की ब्राम्हण के लिए जनेऊ चारण करना आवश्यक है और इसके बारे मे कई बाते बताई/उन्होंने कहा की अगली बार आऊँगा तो मै अपने हाथ से बना जनेऊ लाऊँगा और उसे पहनाऊँगा/अगली बार जब वह आए तो वे जनेऊ लाए थे बहुत विधि विधान से मुझे इस शर्त के साथ पहनाया की मै जीवन पर्यंत जनेऊ धारण करूंगा/मैंने स्वीकार किया और अब तक निभा रहा हू/मेरे तीन लड़किया और एक लड़का है/उस समय मेरे बच्चे बहुत छोटे थे और मेरी माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी/बड़ी दो लड़किया थी/शादी के लिए मेरे पास धन के नाम पर कुच्छ भी नहीं था/यह बाबा का आशीर्वाद था की सबकी शादिया बहुत अच्छी हुयी और मेरा काम भी शनै शनै बेहतर से बेहतर स्तिथि मे आ गया है/ मेरी पत्नी को एक शालिग्राम और नर्मदेश्वर दे गए है जिनकी हम रोज पूजा करते है और उनका स्मरण करते है/बाबा जी केवल वही भोजन करते थे जो हमारे घर मे बंनता था इसके अलावा न तो वे कोई धन स्वीकार करते थे और न अन्य वस्तु/पिछले लगभग 30 वर्षों से वे हमारे यहा नहीं आए है, लेकिन जीवन काल मे एकमात्र ऐसे साधु मिले जिन्होंने वास्तव मे हमारा कल्याण किया/
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नारायण स्वामी जी के बारे में जान कर अच्छा भी लगा और संतोष भी हुआ कि उनकी जैसी विभूतियां हैं।
उनके बारे में बताने के लिये आपका धन्यवाद बाजपेई जी!
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