दस साल से उसका परिवार जाति बाहर था। कोई उससे सम्बंध नहीं रखता था। गांव के बाहर पान बहार, पान, सुरती, गोली-चूरन की गुमटी लगाता था वह। देर रात को भी गुमटी खोल कर बैठा रहता था।
हाल ही में वह मर गया। बुढ़ापा ही कारण रहा होगा।
बिरादरी के द्वारा बहिष्कृत था, तो यद्यपि उसकी शवयात्रा में लोग गये; वह तो शायद मूल मानवता का मुद्दा था; पर उसके आगे समस्या पैदा हो गयी कि दाह संस्कार के बाद के कर्मकाण्ड में बिरादरी क्या रुख अपनाये? इस गुत्थी को सुलझाने के लिये बिरादरी के सोलह गांवों के चौधरियों की आपात बैठक बुलाई गयी।

बिरादरी ने तय किया कि कुछ दण्ड दे कर उसके परिवार को बिरादरी का अंग फिर से बना लिया जाये। कुछ बिरादरी-वापसी जैसा निर्णय।
पहले दण्ड के रूप में दोषी को बिरादरी के लिये बर्तन, खाट-तख्त आदि देने का निर्णय होता था। उनका प्रयोग बिरादरी के सामुहिक समारोहों में किये जाने की प्रथा थी। अब बदलते समय में बर्तन और टेण्ट-फर्नीचर तो केटरर या टेण्ट हाउस वाला सप्लाई करने लगा है। सो उस तरह के दण्ड की अहमियत नहीं रही। तय पाया गया कि तत्काल मृतक दोषी का परिवार सभी चौधरियों को भरपेट (पांच किलो) गुलाबजामुन खिलाये। उसके बाद बिरादरी उसके कर्मकाण्ड – दसवाँ, तेरही आदि में शरीक होगी। सभी कर्मकाण्ड सम्पन्न होने पर परिवार एक और सामुहिक भोज देगा पूरी बिरादरी को। उस भोज में तृप्त होने के बाद फुल एण्ड फाइनल वापसी मानी जायेगी दोषी परिवार की बिरादरी में।

इस निर्णय के बारे में जानने के बाद मेरा सप्लीमेण्ट्री सवाल था – वह परिवार जात बाहर क्यों हुआ?
पता चला कि पास के गांव की दूसरी जाति की लड़की भगा ले गया था उसका लड़का। शादी कर ली और अब उसके बच्चे भी हैं। बिरादरी को बिरादरी के बाहर का यह उद्दण्ड सम्बंध पसंद नहीं था। मृतक ने भी अपने लड़के का साथ दिया था; सो पूरे परिवार के जात बाहर का निर्णय हुआ था।
बिरादरी हिंदू धर्म का अंग है इस लिये यह सब हुआ। किसी अब्राह्मिक धर्म की होती तो उत्सव मनाते वे। जिहाद टाइप चीज मानी जाती। भगाने वाले लड़के को आफ्टरलाइफ में 72 हूरें स्वीकृत होतीं। अभी तो बेचारे पांच किलो गुलाब जामुन और एक महाभोज का दण्ड भर रहे हैं।
दस साल पहले वह जाति-बहिष्कृत हुआ था। एक दशक बाद भी अगर वैसा कुछ हो तो बिरादरी क्या वही निर्णय लेगी या सामाजिक समीकरणों में बदलाव आये हैं? इस समाजशास्त्रीय प्रश्न का मैं कोई उत्तर नहीं सोच पाता। इस समय में कई विजातीय विवाह होते मैंने देखे सुने हैं। समाज कुछ कुनमुनाया है उन्हें ले कर पर चार छ महीनों में सब सामान्य हो गया है। समाज की सोच बदली लगती है।
शायद।
Gaon dehat ki prachalit kuprathayen avam gaon ka nyay ka satik chitran kiya h sir apne
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद जी 🙏🏼
LikeLike