प्रेमसागर खेत के बीच भी हिल कर चाय की पत्तियों को परखे और उनकी गंध से परिचित हुये। “भईया मैं आपके लिये यहां से एक किलो चाय ले कर आऊंगा। एक किलो तैयार की हुई फेक्टरी से निकली चाय और कुछ चुनी हुई चाय की पत्तियां भी।…”
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कंकी से अलीगंज
महादेव के भरोसे ही तो चल रहे हैं प्रेमसागर। जीजीविषा है, संकल्प है, पर महादेव की सहायता के चमत्कार भी बहुत हैं। फटक गिरधारी, न लोटा न थारी की तरह यात्रा पर निकल लिये हैं और सब इंतजाम हुये जा रहा है! यह मिरेकल ही तो है!
मूरत यादव और मिश्री पाल के साथ गपशप
घुमा फिरा कर मुझसे पूछते हैं – कितने लोगों को नौकरी दिया होगा रेल सेवा के दौरान?
बताने पर कि 3-4 को बंगलो पीयून रखा था; वे कहते हैं कि आपसे पहले मिले होते तो जिनगी तर गयी होती! तब भेंड़ी-गाय-भैस थोड़े पालनी पड़ती।
