#200शब्द – कैलाश दुबे


मुझे यह लगा कि यूंही, कैलश जी के पास जाया और बैठा जा सकता है। धर्म और अर्थ को सरलता के मधु में जिस कुशलता से उन्होने साधा है, वह अभूतपूर्व है।

पहले का ग्रामीण रहन सहन और प्रसन्नता


लोग सामान्यत: कहते हैं कि पहले गरीबी थी, पैसा कम था, मेहनत ज्यादा करनी पड़ती थी, पर लोग ज्यादा सुखी थे। आपस में मेलजोल ज्यादा था। हंसी-खुशी ज्यादा थी। ईर्ष्या द्वेष कम था।

कुछ बच्चों के पुराने चित्र


कुल मिला कर लड़कियों की जिंदगी ढर्रे पर चल निकली है। वे घर संभालने लगी हैं। खेतों में कटाई के काम में जाने लगी हैं। लड़के अभी बगड्डा घूम रहे हैं, पर कुछ ही साल बाद मजदूरी, बेलदारी, मिस्त्रियाना काम में लग जायेंगे।

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