सवेरे निकलता हूं घूमने। गंगा तट पर जाना होता है तो उसी समय। अब सर्दी बढ़ गयी थी। सवेरे की बजाय सोचा दिन निकलने पर निकला जाये। बटोही (साइकिल) ने भी हामी भरी। राजन भाई भी साथ निकले पर वे अगियाबीर के टीले पर निकल गये; वहां प्राचीन सभ्यता के गहने-सेमीप्रेशस स्टोन्स के अनगढ़ टुकड़ोंContinue reading “दोपहर में द्वरिकापुर में गंगा किनारे”
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धोख
मैं उसे बिजूका (scarecrow) के नाम से जानता था, यहां उसे गांव में धोख कहते हैं। शायद धोखा से बना है यह। खेत में किसान की फसल को नुक्सान पंहुचाने वाले हैं जंगली जानवर (नीलगाय या घणरोज़) और अनेक प्रकार की चिड़ियां। उनको बरगलाने या डराने के लिये है यह धोख। खेत के दूसरे किनारेContinue reading “धोख”
गांव में अजिज्ञासु (?) प्रवृत्ति
गांव में बहुत से लोग बहुत प्रकार की नेम ड्रॉपिंग करते हैं। अमूमन सुनने में आता है – “तीन देई तेरह गोहरावई, तब कलजुग में लेखा पावई” (तीन का तेरह न बताये तो कलयुग में उस व्यक्ति की अहमियत ही नहीं)। हांकने की आदत बहुत दिखी। लोगों की आर्थिक दशा का सही अनुमान ही नहींContinue reading “गांव में अजिज्ञासु (?) प्रवृत्ति”
