धीरेंद्र सामान्य मुद्दों पर भी मनन-मंथन कर कुछ नया नजरिया प्रस्तुत करने की विधा के माहिर हैं। इसीलिये मैंने सोचा कि रिटायरमेण्ट @ 45 वाले मुद्दे पर वे कुछ बेहतर बता सकेंगे, तभी यह विषय मैंने उनके समक्ष रखा।
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पाणिनि जी के कहे पर अवधी में लिखइ क परयोग
एक साध मन में जरूर जिंदा रही कि अवधी में, आपन बोली में पांच सात मिनिट बोलि सकी। बकिया, हमार पत्नी जी ई परयोग के बहुतइ खिलाफ हइन। ओनकर बिस्वास बा कि हमार अवधी कौनौं लाया नाहीं बा।
रिटायरमेण्ट@45
मुझे यह विश्वास नहीं होता कि जब लॉगेविटी 100 साल की हो जायेगी तो पैंतालीस की उम्र में रिटायर हो कर लोग बाकी के पांच दशक सशक्त और रचनात्मक तरीके से विलासिता की हाय हाय में न फंसते हुए, हर साल नये बनते गैजेट्स को लेते बदलते रहने या नये मॉडल की सेल्फ ड्रिवन कार लिये बिना बिता सकेंगे।
पॉडकास्ट गढ़ते तीन तालिये
उन लोगों के कहे में वह ही नहीं होता जो आप सोचते हैं। पर उससे कहीं बेहतर होता है, जो आप सोचते हैं। यही मजा है तीन ताल पॉडकास्ट का। मैं अनुशंसा करूंगा कि आप इस सीरीज के सभी पॉडकास्टों का श्रवण करें, करते रहें। इसका नया अंक आपको शनिवार देर रात तक उपलब्ध होता है।
राजबली से मुलाकात
राजबली दसवीं आगे नहीं पढ़े। उसके बाद ममहर बाजार में किराने की दुकान खोली। पर उनके बब्बा को यह पसंद नहीं था कि घर से दूर राजबली पुश्तैनी धंधे से अलग काम करें।
उनकी गांव में मकान बनाने की सोच बन रही है। बसेंगे भी?
अगर ईमानदारी से कहा जाये तो हर व्यक्ति, जो गांव में रीवर्स माइग्रेट होने की सोचता है, उसे कुछ न कुछ मात्रा में नीलकण्ठ बनना ही होता है। पर मैं अगर गांव में आने के नफा-नुक्सान का अपनी प्रवृत्ति के अनुसार आकलन करता हूं; तो अपने निर्णय को सही पाता हूं।