धीरे धीरे चल रही थी उनकी कार। रास्ते में आश्रम वासी हाथ जोड़ खड़े हो जाते थे और वाहन सामने से गुजरते समय दण्डवत प्रणाम करते थे।
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अपने मन को साधना कितना कठिन है!
सूर्यमणि जी ने कहा – “मेरे गुरुजी कहते हैं कि अपने भौतिक जीवन (बैंक) से एकमुश्त निकासी सम्भव नहीं होती। भौतिक बेंक से एक एक रुपया के हिसाब से निकालो और एक एक रुपया आध्यात्मिक अकाउण्ट में जमा करो।” इस धीमी रफ्तार से व्यक्तित्व का रूपांतरण होगा।
केदारनाथ चौबे, परमार्थ, प्रसन्नता, दीर्घायु और जीवन की दूसरी पारी
उनका जन्म सन बयालीस में हुआ था। चीनी मिल में नौकरी करते थे। रिटायर होने के बाद सन 2004 से नित्य गंगा स्नान करना और कथा कहना उनका भगवान का सुझाया कर्म हो गया है।
