मालिन बैठती है कोटेश्वर महादेव मन्दिर के प्रांगण में। घिसा चन्दन, बिल्वपत्र, फूल, मालायें और शंकरजी को चढ़ाने के लिये जल देती है भक्तजनों को। एक तश्तरी में बिल्वपत्र-माला-फूल और साथ में एक तांबे की लुटिया में जल। भक्तों को पूजा के उपरांत तश्तरी और लुटिया वापस करनी होती है। मैने उससे पूछा – लुटियाContinue reading “मन्दिर पर छोटी छोटी चीजें गुम जाने का समाजशास्त्र”
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लोग यात्रा क्यों करते हैं?
गुरुनानक या आदिशंकर की यात्रायें मुझे लुभाती हैं। आप घर से लोटा-डोरी-सतुआ ले कर निकल लें और अनचले रास्तों पर चलते चले जायें। कितना अच्छा हो वह। पर यह भी क्या कि एक ही जगह पर उफन पड़े मानवता – भगदड़, संक्रामक रोगों और अव्यवस्था को इण्ड्यूस करते हुये। पवित्र नदी को और गंदा करते हुये।…यात्रा की अनिवार्यतायें समय के साथ कम होनी चाहियें!
माधव सदाशिव गोलवलकर और वर्गीज़ कुरियन
वर्गीज़ कुरियन की पुस्तक – ’आई टू हैड अ ड्रीम’ में एक प्रसंग माधव सदाशिवराव गोलवलकर ’गुरुजी” के बारे में है। ये दोनों उस समिति में थे जो सरकार ने गौ वध निषेध के बारे में सन् १९६७ में बनाई थी। इस समिति ने बारह साल व्यतीत किये। अन्त में मोरारजी देसाई के प्रधानमन्त्रित्व केContinue reading “माधव सदाशिव गोलवलकर और वर्गीज़ कुरियन”
