कोलाहलपुर के सुरेश


सेण्टर से कच्चा माल ले कर आते हैं और डिजाइन अनुसार बुनने के बाद सेण्टर पर देने से उन्हे काम के अनुपात में भुगतान होता है। सुरेश के अनुसार दो सौ रुपया रोज की आमदनी है। “इससे बढ़िया कहीं नौकरी/वाचमैनी होती?”

प्रेमचंद को यकीन है कि मोक्ष मिलेगा कभी न कभी


वे अपने एक ट्रांस के अनुभव को बताने लगे – “सवेरे की रात थी। नींद में मुझे लगा कि त्रिशूल गड़ा है – धरती से आसमान तक। त्रिशूल के ऊपरी भाग पर डमरू लटका है और पास में शिवजी आसन लगा कर ध्यानमग्न हैं।

कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान और मुनीबाबा की पूजा


किशोर वय की लड़कियां थीं। वे यह पूजा-अनुष्ठान किस लिये करती होंगी? हर व्यक्ति कोई न कोई ध्येय गंगा स्नान और पूजा से जोड़ता है। उनके सामने क्या ध्येय होगा?

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