राधे सिंह के ढाबे पर चाय


ढाबे वाले सज्जन ने एक डिजाइनर कुल्हड़ में चाय मुझे थमाई और खुद भी एक छोटे सामान्य कुल्हड़ में चाय ली। शायद ढाबे पर सवेरे की पहली चाय थी। सो मालिक जी भी चाय पी रहे थे।

चिड़ियोंं का कलेवा


कव्वे भी पास आने लगे हैं। पहले वे नीम के पेड़ के नीचे अपनी चोंच में खूब सारे रोटी के टुकड़े समेट भाग जाया करते थे। अब वे हमारी कुर्सी के पास नमकीन चुगने लगे हैं। चरखी और मैंना की अपेक्षा वे ज्यादा सतर्क रहते हैं।

कटका स्टेशन का लेवल क्रॉसिंग


वह लेवल क्रॉसिंग बहुत खराब है, पर उससे भी ज्यादा खराब मैंने देखे हैं। अगर उससे एक दो बार गुजरना होता तो शायद मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। दिक्कत यह है कि मुझे अपनी साइकिल ले कर दिन में दो चार बार उससे गुजरना होता है।

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