धर्मेंद्र सिंह की दण्डवत यात्रा


आगे एक दूसरा नौजवान सड़क पर लम्बा लेट कर दूरी नाप रहा था। उसके हाथ में एक पत्थर की गुट्टक थी। जिसे वह अपने हाथ आगे फैला कर सबसे अधिक दूरी पर रखता था और फिर उठ कर गुट्टक वाली जगह अपना पैर रख पुन: दण्डवत लेटता था।

लोलई राम गुप्ता का भिण्डा


खांची में कई छेदों वाली पूपली के कई पैकेट थे। एक पैकेट बीस रुपये का। खुदरा में दो रुपये का एक बेचते होंगे दुकानदार। उसका नाम फेरीवाले ने बताया – “लोग चिप्स कहते हैं पर हम उसे भिण्डा कहते हैं। कटी भिण्डी जैसा दिखता है।”

पीतल का हण्डा


चार पांच हजार का हण्डा केवल शादी के प्रतीक भर में से है। मैंने किसी को उसमें जल रखते नहीं देखा। दूर कुयें से पानी लाने की प्रथा या जरूरत भी खत्म होती गयी है। सिर पर गागर लिये चलती पनिहारिनें अब चित्रों में ही दीखती हैं।

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