“यह नहीं हो सकता। इस जगत के जो सुख दुख हैं, वे हमें भोगने ही हैं। निर्लिप्त भाव से उन्हें इसी जगत में ही भोग कर खत्म कर दिया जाये, यही उत्तम है। अन्यथा वे अगले जन्म में आपका पीछा करेंगे। उन्हें आपको भोगना तो है ही।”
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मूलचन्द, गीता पाठ और भजन गायन
विपन्नता और जिम्मेदारियों में यह व्यक्ति टूटने की बजाय गंगा स्नान, गीता पाठ और भरथरी के नाथ पन्थी जोगियों के भजन का सहारा ले रहा है। गजब है मूलचन्द। गजब है हिन्दू समाज!
नदी, मछली, साधक और भगव्द्गीता
अचिरेण – very soon – में कोई टाइम-फ्रेम नहीं है। वह ज्ञान प्राप्ति एक क्षण में भी हो सकती है और उसमें जन्म जन्मांतर भी लग सकते हैं!
