उसने मुझे दिखाया था कि साठ रुपये की पुड़िया में दो तीन दिन तक वे तीन चार लोग चिलमानंद मग्न रह सकते थे। वह ‘सात्विक’ आनंद जिसे धर्म की भी स्वीकृति प्राप्त थी। यह सब मैं, अपनी नौकरी के दौरान नहीं देख सकता था।
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रघुनाथ पांड़े और धर्मराज के दूत
रघुनाथ पांंड़े मुझसे बताते हैं – “ई जरूर बा कि ऊ धर्मराज क दूत रहा।” उनके अनुसार स्वर्ग के दूत सफेद कपड़े में गौर वर्ण के होते हैं। यमराज के दूत काले, मोटे और बदसूरत होते हैं।