जंगर चोरई नहींं करता मैं – रामसेवक


वे अपने हिसाब से बनारस से खरीद लाते हैं फूलों के पौधे, गमले या अन्य उपकरण। मेरी पत्नीजी उनके साथ लगी रहती हैं। पौधों, वृक्षों को पानी देना, धूप में रखना या बचाना आदि नियमित करती हैं। मेरी पोती चिन्ना पांड़े भी रामसेवक अंकल से पूछने के लिये अपने सवाल तैयार रखती है।

रविवार, रामसेवक, अशोक के पौधे और गूंगी


माता-पिता ने उनका नाम रामसेवक रखा तो कुछ सोच कर ही रखा होगा। पौधों की देखभाल के जरीये ही (राम की) सेवा करते हैं वे! उनकी पत्नी को गुजरे दशकों हो गए हैं। बच्चे छोटे थे तो उनको पालने और उन्हें कर्मठता के संस्कार देने में सारा ध्यान लगाया।

राम सेवक के बागवानी टिप्स


उनके आते ही घर के परिसर की सूरत बदलनी शुरू हो गयी है। हेज की एक राउण्ड कटिंग हो गयी है। मयूरपंखी का पौधा अब तिकोने पेण्डेण्ट के आकार में आ गया है। एक दूसरे से भिड़ रहे पेड़ अब अनुशासित कर दिये गये हैं।

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