“मैं अपने काम के सिलसिले में जर्मनी या अमेरिका में होता था। सर्दियों (जनवरी-फरवरी) में वहां सूरज कम ही दिखते थे। जब दिखते थे तो हृदय की गहराई में अनुभूति होती थी कि जैसे कोई मेरे घर-गांव से खबर ले कर आया हो! सूरज वही होते थे, जो मुझे अपने घर के पास मिलते थे।” – सूर्यमणि तिवारी
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पैदल जाते भरत पटेल
अस्सी पार का व्यक्ति, बारह किलोमीटर सामान्य चाल चलने का स्टेमिना और उम्रदराज होने पर भी अपने नाते रिश्तों से मेल मिलाप हेतु यात्रा करने का ज़ज्बा – अपने ननिहाल तक से रिश्ता जीवंत रखना – यह सामान्य बात नहीं है।
पचीसा
“पचीसा।” उन्होने खेलते खेलते, बिना सिर उठाये जवाब दिया। बताया कि चौबीस गोटियोँ का खेल है। दो खिलाड़ी होते हैं। काली और सफेद गोटियों वाले। हर एक की बारह गोटियाँ होती हैं।
