झूला हमारे गांव की जिन्दगी के सेंस ऑफ प्राइड की वस्तुओं में प्रमुख है।
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पद्मजा पान्दे, चूनी धईके तान्दे…
घर आकर चिन्ना (पद्मजा) पाण्डे ने बताया कि स्कूल में बच्चे उसपर doggerel (निरर्थक बचपन की तुकबंदी) कहते हैं – पद्मजा पान्दे (पद्मजा पाण्डे)चूनी धईके तान्दे (चोटी धर कर – पकड़ कर तान दे)खटिया से बान्दे (खटिया से बाँध दे) डॉगरेल बचपन के कवित्त हैं। निरर्थक, पर उनमें हास्य, व्यंग, स्नेह, संस्कृति, भाषा – सभीContinue reading “पद्मजा पान्दे, चूनी धईके तान्दे…”
गांव में अजिज्ञासु (?) प्रवृत्ति
गांव में बहुत से लोग बहुत प्रकार की नेम ड्रॉपिंग करते हैं। अमूमन सुनने में आता है – “तीन देई तेरह गोहरावई, तब कलजुग में लेखा पावई” (तीन का तेरह न बताये तो कलयुग में उस व्यक्ति की अहमियत ही नहीं)। हांकने की आदत बहुत दिखी। लोगों की आर्थिक दशा का सही अनुमान ही नहींContinue reading “गांव में अजिज्ञासु (?) प्रवृत्ति”
लिखूं, या न लिखूं किताब उर्फ़ पुनर्ब्लागरो भव:
मेरे साथ के ब्लॉगर लोग किताब या किताबें लिख चुके। कुछ की किताबें तो बहुत अच्छी भी हैं। कुछ ने अपने ब्लॉग से बीन बटोर कर किताब बनाई। मुझसे भी लोगों ने आग्रह किया लिखने के लिये। अनूप शुक्ल ने मुझे ब्लॉग से बीन-बटोर के लिये कहा (यह जानते हुये कि किताब लिखने के बारेContinue reading “लिखूं, या न लिखूं किताब उर्फ़ पुनर्ब्लागरो भव:”