लॉकडाउन के पहले की बात है, गुन्नीलाल पांड़े जी ने कहा था कि यह काशी-विंध्याचल-संगम के बीच का क्षेत्र है। कोरोना का यहां कोई असर नहीं होगा। उस दिन (अठारह मार्च) की यह रही ट्वीट –
गुन्नीलाल जी उस दिन यह कह, शायद मुझे सांत्वना दे कर, मेरा कोरोनावायरस विषयक तनाव कम कर रहे थे। पर उस दिन के बाद उनसे मुलाकात नहीं हुई। उसके बाद जनता कर्फ्यू हुआ, और फिर लॉकडाउन। कालांतर में लॉकडाउन का एक्स्टेंशन। लोगों से यदा कदा उनकी खबर मिलती रही। पाण्डेय जी अपने घर से नहीं निकले और मैं भी उनकी ओर नहीं गया।
अब, कल बात हुई गुन्नीलाल जी से फोन पर। बोले –
“यह आसानी से जाने वाला नहीं है। कोई टीका नहीं है इसका और कोई इलाज भी नहीं। बस बच कर ही रहा जाये।”
महीने भर में कोरोना के बारे में धारणा बदल गयी है। गुन्नीलाल जी, और हम सब भी, इस विषाणु की मारक क्षमता को आंक-पहचान चुके हैं। अब एक दूसरे को ढाढस देने की अवस्था से हट कर एक दूसरे से अपने अपने भय शेयर कर रहे हैं।

इस पूरे इलाके की यूपोरियन बेफिक्री; बनारसी मनमौजियत; सहम गयी है। लोग (उसमें मैं भी शामिल हूं, शायद) जाने अनजाने जोखिम ले रहे हैं बाहर निकलने, काम करने या आपसी आदान प्रदान का; पर उनमें वह उन्मुक्तता नजर नहीं आती। हम लोग एक कदम आगे और दो कदम पीछे रख रहे हैं किसी भी काम में। कुछ लोग तो बाई डिफॉल्ट ज्यादा दूर की नहीं सोचते; पर अब लम्बा सोचने वाले लोग भी साल दो साल किसी तरह गुजार लेने की बात कह रहे हैं।
दिनों दिन लीनियर नहीं एक्स्पोनेंशियल तौर पर बढ़ते कोरोनावायरस के मामले और मौतों के आंकड़े आंखों में चुभते हैं। नहीं – वे बड़ी क्रूरता से हमारी आंखों में देखने/घूरने लगे हैं।
अब लोग टोटकों वाले प्लैसबो की बातें नहीं करते। अब लोग हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन या रेमडेसिविर (remdesivir) जैसे टंगट्विस्टर दवाओं के नामों का उच्चारण करने लगे हैं। अब यह नहीं कहते कि गर्मी बढ़ते ही कोरोना गायब हो जायेगा। या फिर दो-चार महीनों में इसका टीका ईजाद हो जायेगा। लोग अब परेशानी के मोड में आ गये हैं।
ज्योतिष में दखल रखने वाले, जो कल तक कहते थे कि 14 अप्रेल तक कोरोना नरम पड़ जायेगा और तीस अप्रेल तक गायब हो जायेगा; अब शनि की वक्र दृष्टि और “युद्ध जैसी स्थितियों की सम्भावना” की भविष्यवाणी की ओर अपनी पोजीशन शिफ्ट करने लगे हैं। थोड़ा समय और गुजरे तो शायद कोरोना, कोरोनामाता बन जाये और उसकी विधिवत मूर्ति स्थापना कर महामृत्युंजय का अखण्ड पाठ होने लगे।

सर्दी को लेकर एक कहावत है – लड़िकन के हम छूइति नाहीं, ज्वान हैं मेरे भाई। बुढ़वन के हम छोड़िति नाहीं, चाहे ओढंइ केतनऊ रजाई (लड़के और जवानों पर मेरा प्रभाव नहीं है, पर बूढ़ों को मैं छोड़ती नहीं)। कमोबेश कोरोनावायरस को ले कर भी वही दशा है। बच्चों और जवानों को अपने में हर्ड इम्यूनिटी बनाने के अवसर हैं; पर वृद्धों को तो बचा कर रखना है।
कोरोनावायरस का भय, लगता है, उम्रदराज लोगों में ज्यादा है। वे रामायण, महाभारत सीरियलों में मन टहलाते तो हैं, पर घूम फिर कर कोरोना की चर्चा पर चले आते हैं!

कुल मिला कर बड़ी असमंजस की दशा है।
integrated upachar ki sharan me ayenge to is mahamari se bachenge bhi aur yahi ek matra ilaj ka tarika hai / pichchle 55+ salo se aise hi mahamari se har sal nipatane ke bad yahi mera anubhav hai / abhi sab halla macha rahe hai / mai shanti se baitha sab dekh raha hu aur sun raha hu /pichchale 55+ sal ka anubhav mahamari ke har sal ilaj karane ke bad yahi mila hai ki akhir me integrated ilaj hi isaka ek matra rasta hai jo mai pahale hi kah chuka hu / isaka na koi tika 5 sal me vikasit ho jaye to duniya ka 8va ashcharya hoga /
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