दोपहर दो बजे। मौसम गर्म था, धूप तेज। पत्नीजी ने आवाज सुन कर बाहर झांका ओर आ कर बताया कि कोई मस्क बेच रहा है।
मस्क? कस्तूरी?
कस्तूरी इतनी मंहगी चीज है – आजकल कहां मिलती है और कौन फेरीवाला बेचेगा? वह भी गांव में? जरूर फ्रॉड होगा। फिर भी मैं उठा। आजकल लॉकडाउन काल में हर एक फेरीवाले की इज्जत बढ़ गयी है। क्या पता कौन काम की चीज लिये हो।

घर के बाहर गेट तक निकल कर गया तो देखा कि एक साइकिल सवार हैंडिल में एक झोला लटकाये, हाथ में साधारण से मास्क लिये है। चाइनीज वाइरस के जमाने में मास्क की बढ़ी हुई मांग की आपूर्ति कर रहा है। बताया कि पैंतीस रुपये में एक “मस्क” है। दो कपड़े की लेयर का मास्क। ऊपर काले रंग का कपड़ा है और भीतर अधिक महीन सफेद रंग का। टी-शर्ट और बनियान के कपड़े जैसे। उसी काले कपड़े के दो छल्ले साइड में बने हैं जो कान पर अटकाने के लिये हैं। बहुत साधारण डिजाइन।
दो लेयर का मास्क लगभग 50 से 60 प्रतिशत छोटे पार्टिकल्स छानने में सक्षम होगा, मैंने अंदाज लगाया। कोरोना वायरस को मुंह और नाक में जाने से रोकने के लिए शायद काम करेगा। लोग गमछा लपेटने की सलाह दे रहे हैं। वह लपेटने में बार बार सरक जाने और ढीला पड़ जाने की परेशानी होती है। यह उससे बेहतर ही होगा।
ऐसा ही मास्क मैंने गांव के दर्जी घुरहू को बनाने को कहा था तो उसने हजार तरह के बहाने बनाये। मुझे उससे बात कर लगा था कि यहां लोग बाजार का दोहन करना नहीं जानते। इस बंदे को देख कर वह विचार कुछ मंदा पड़ा। घोर गर्मी में साइकिल पर मास्क की आपूर्ति करने निकला है यह व्यक्ति।
“तुम तो मास्क बेच रहे हो, पर तुमने तो खुद मास्क पहना नहीं?” – उस व्यक्ति को देख कर वही भाव आये – महानगरों में मजदूर स्काईस्क्रेपर्स बनाते हैं; पर उनके खुद के पास खुला आसमान होता है।
मास्क, जिसका वह सही उच्चारण भी नहीं कर पाता, की उपयोगिता मात्र बेच कर कुछ कमाने के लिए है, खुद पहनने के लिए नहीं!
उसने मास्क न लगाने को उचित ठहराते हुए उत्तर दिया – “ऊ सऊ रुपिया क दवाई आवथअ। ओके छिरिक क अऊर हाथ पर मलि क निकरा हई ( वह सौ रुपये की दवाई आती है, उसे शरीर पर छिड़कर और हाथ में मल कर निकला हूँ)।” समझ में आया कि वह सेनीटाइजर जैसी चीज की बात कर रहा है।
मास्क, जिसका वह सही उच्चारण भी नहीं कर पाता, की उपयोगिता मात्र बेच कर कुछ कमाने के लिए है, खुद पहनने के लिए नहीं!
उसने मुझे सौ रुपये में तीन दिये। घर में दस मास्क हैं – एन 95 वाले, जो दो साल पहले मैंने धूल से बचाव के लिये खरीदे थे अमेजन पर। तब भी इस व्यक्ति से तीन खरीद लिये। भरी दुपहरी ले कर निकला है बेचारा…

कछवां बाजार से ले कर चला है। रास्ते में पुलीस वाले बैरियर लगा कर चौकी बनाये बैठे हैं, पर उन्होने रोका नहीं। आखिर कोरोना-यज्ञ की हवन सामग्री ले कर सप्लाई करने ही तो निकला है वह।
उसने बताया कि बनारस से डेली अखबार सप्लाई करने वाले साथ ले कर आये थे। वैसे तो कोई सामान आ नहीं रहा है; पर अखबार वाले इस तरह की चीज ले आते हैं – उन्हे कोई टोकता नहीं। अखबार वाले से खरीदा है उसने और आगे गांव गांव बेचने निकला है।
इस व्यक्ति को देख कर समझ आया कि बाजार कैसे काम करता है।
bahut sasta mil gya pandey ji apako mask / ye kam wala hai aur bekar nahi hai /
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