सवेरे की चाय पर लगभग रोज रहते हैं राजन भाई। मेरे चचेरे भाई हैं। उम्र में मुझसे करीब छ साल बड़े। उनका घर रेलवे लाइन के उस पार अहाता में है। हमारे घर से करीब आधा किलोमीटर दूर। लॉकडाउन पीरियड में एक वही हैं, जो लगभग नियमित मिलते हैं। उनसे गांव की कई सूचनायें मिलती हैं। अन्यथा हम लोग शायद उतने सामाजिक नहीं हैं। 😆

उनसे कई तरह की चर्चा होती है। आज वे थोड़ा परेशान थे। उनकी सात महीने की पोती की कुछ स्वास्थ्य सम्बंधी समस्या है। उनसे बात करते समय मुझे बरबस अपनी नानी की याद हो आयी। जब मैं अपने तीन महीने के बेटे के साथ दिल्ली से बनारस उनके पास आयी थी। आने के पहले बेटा बीमार था और मेरे साथ उसके सामान की बड़ी सी गठरी थी। उसमें थे बदाम का तेल, जान्सन के उत्पादों का पूरा किट और अनेक दवाइयां।
नानी ने वह सब एक तरफ पटक दिया। पूरे दिन भुनभुनाती रहीं कि किताब पढ़ कर बच्चे पाले जायेंगे? बदाम के तेल से हड्डी मजबूत होगी? अरे ये सब चोंचले हैं।
और फिर उन्होने मोर्चा सम्भाला। एक कटोरी सरसों के तेल से दोपहर होने तक वे चार बार मेरे बच्चे की मालिश करतीं। फिर नहला कर, पाउडर वगैरह लगा, सुला देती थीं। मालिश का असर था कि वह घोड़ा बेंच कर सोता था। पहले तो उसे बड़ी मुश्किल से सुलाया जाता था।

पहली मालिश के बाद चंदन घिसने वाली चकली पर वे सुबह की घुट्टी बनाती थीं। हरड़ (तीन – चार राउण्ड), छुआरा (पांच सात राउण्ड), जायफल (तीन-चार राउण्ड) और बदाम (एक छोटा बदाम) थोड़े पानी के साथ घिस कर उसे एक चम्मच पिला कर फिर दूध देती थीं। यह घुट्टी समय के साथ बढ़ कर डेढ़ से दो चम्मच हो गयी। बचपन से ले कर आजतक (अब वह अढ़तीस साल से ऊपर हो गया है) उसे पेट सम्बंधित बीमारी नहीं हुई।
मैंने अपने नाती (बेटी के पुत्र) के लिये भी यही नुस्खा अपनाया था।
मेरे बच्चे और नेरे नाती-पोती (बेटे की पुत्री) कभी सेरेलेक जैसे डिब्बाबंद पौष्टिक (?) आहार पर निर्भर नहीं हुये। उन्हें जो भी देना होता था, ताजा ही बना कर दिया जाता था। आज सवेरे की चाय पर यही नुस्खा मैंने राजन भाई को बताया और उन्हे सेरेलेक जैसे आहार के लिये तो जोर दे कर मना किया। घर में जा कर राजन भाई अपनी पत्नी और बहू को यह बतायेंगे तो पता नहीं वे मेरे बारे में क्या धारणा बनायेंगी।
राजन भाई अगर अच्छा फीडबैक देंगे, तो उन्हें आगे बताने के लिये मेरे पास नानी के नुस्खे बहुत हैं। वे नुस्खे जो दो पीढ़ियों पर मैंने अजमाये हैं। समय समय पर राजन भाई को और ब्लॉग पोस्टों के माध्यम से मैं बताती रहूंगी।

अपडेट: फेस बुक पर नीलोफ़र त्रिपाठी जी का प्रश्न – हरड़(तीन चार राउंड) छुहारा (पांच सात राउंड) इसका मतलब क्या हुआ?
उत्तर – Nilofer Tripathi जी, एक हरड़ या हर्रे को चुटकी में दबा कर उसे गीली चकली पर तीन चार बार गोल गोल घिसने पर जो हिस्सा घिस कर चकली पर बचता है, उसका प्रयोग करना है। इसी पर अन्य औषध भी कहे अनुसार घिसें। कुल मिला कर जो अवशेष चकली पर इकठ्ठा होते हैं उनको चम्मच में ले कर बच्चे को पिलाएं।
बहुत अच्छी बातें सादर अभिवादन
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मेरे परनाना, जिन्हें आयुर्वेद का काफी ज्ञान था, बताते थे आयुर्वेद में लिखा है “यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी”
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हाँ, हरड़ को माँ कहा जाता है। हरड़ बहेड़ा आंवला – ये तो अमृत तुल्य माने जाते हैं!
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