अच्छी भली स्वस्थ काया। देखने में मेधा भी कुंद नहीं लगती। पर कुछ सार्थक उद्यम की बजाय मंदिर की “प्रेरणा” से भिखमंगत्व को अपना कर पिछले पांच छ साल से जीवन यापन कर रहा है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
अच्छी भली स्वस्थ काया। देखने में मेधा भी कुंद नहीं लगती। पर कुछ सार्थक उद्यम की बजाय मंदिर की “प्रेरणा” से भिखमंगत्व को अपना कर पिछले पांच छ साल से जीवन यापन कर रहा है।