जीवन की मोनोटोनी दूर करने का दौर है। मेरी पत्नी जी सवेरे एक स्पीकर पर म्यूजिक लगा कर घर के ड्राइंग कक्ष में ही घूमने का काम कर रही हैं। करीब पौना घण्टा का हल्का व्यायाम। सर्दियों में घर के बाहर निकलना नहीं हो पा रहा साइकिल ले कर। मेरी पत्नीजी भी मॉर्निंग वॉक पर नहीं निकल रहीं। इस लिये यही किया जा रहा है। वे संगीत सुनते हुये घर में घूमती हैं और मैं कान पर हेड-फोन लगा कर स्टेशनरी साइकिल चलाता हूं। काम भर का व्यायाम हो ही जाता है।

उसके बाद घर में प्लास्टिक के जितने खाली, बिना इस्तेमाल के पड़े डिब्बे हैं; उन्हें कबाड़ी को देने की बजाय, काट कर पेण्ट कर आकर्षक छोटे गमले बना रही हैं। दिन में जब समय मिलता है, बाहर पोर्टिको में बैठ कर गमले रंगने का काम कर रही हैं।

बनारस में फुटपाथ वाली दुकान से सीमेण्ट के गमले खरीदे थे, उनपर भी पेण्ट हुआ है।
मचिया बनाना – उसमें लगे सामान को जुटाना, पेण्ट करना/कराना और राजबली, रामसेवक, अशोक से तालमेल बिठाना – इस सब में अपना समय लगाया है।

तीन साल से ‘मनी’ नामक बिजनेस गेम खरीदा है। वह यह पढ़ कर खरीदा था कि नियमित खेलने से डिमेंशिया/पार्किंसन रोग से बचाव होता है। पर आज तक उसका प्रयोग नहीं किया। अब सोचा जा रहा है कि उसे नियमित खेला जाये।
रामचरित मानस पढ़ने का नियमित कार्य प्रारम्भ किया है हम दोनो ने। जुगलबंदी में एक चौपाई/दोहा वे पढ़ती हैं; एक मैं। बीच में तुलसी का लिखा कोई गूढ़ प्रसंग आता है तो हम लोग बीच में रुक कर उसका अर्थ भी देखते हैं। पोद्दार जी का मानस अनुवाद भी अपने पास रखते हैं। ज्यादा नहीं, शाम के समय बीस दोहे का पठन/वाचन करते हैं। उसके बाद दो दो किशमिश के दानों का प्रसाद भी लेते हैं। मन में है कि इस कार्य के लिये एक डिब्बे में लाचीदाना और कच्ची मूंगफली दाने रखेंगे – प्रसाद के लिये।
ब्लॉगिंग और/या विविध विषयक वीडियो और पॉडकास्ट – यह सब लिखने, पढ़ने, देखने आदि को अपनी आदत में लाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
आनंद को केंद्र में रख कर अपनी आदतें ढालने की एक सयास कोशिश की जा रही है। विचार यह है कि हम उसे पैसा खर्च कर, सामान खरीद कर, मार्केटिंग कर या इधर उधर की बतकही/परनिंदा कर नहीं, विशुद्ध प्रसन्नतादतें (प्रसन्नता-आदतें) विकसित करने से करेंगे।

रघुनाथ जी के लिये मचिया बनाने-बनवाने का उद्यम उसी प्रकार की एक प्रसन्नतादत है! इसमें दूसरी प्रसन्नतादत अपने में ‘देने का भाव’ लाना है। हमने उसकी भी गहन अनुभूति की! हमने रघुनाथ दम्पति से मचिया देने के बदले कुछ पाने की बात सोची ही नहीं थी। पर हमें कई चीजें बहुमूल्य मिलीं –
- श्रीमती गीतांजलि और श्री रघुनाथ जी से आत्मीय सम्पर्क
- रघुनाथ जी द्वारा मेरी बिटिया और दामाद को उनके घर आने का निमंत्रण
- रघुनाथ दम्पति द्वारा भेजा जाने वाला रिटर्न-गिफ्ट। उन्होने जो भेजने की सोची, वह इतना सुरुचिपूर्ण है कि हम उसे किसी भी दशा में मना नहीं कर सकते।
- यह समझ में आना कि गांव में रहते हुये भी अनेकानेक लोगों से – और बहुत उत्कृष्ट लोग हैं दुनियाँ में – जुड़ाव अपने में सघन प्रसन्नता का भाव विकसित करते हुये भी सम्भव है। उसमें किसी भी प्रकार की कोई उकताहट या ड्रजरी नहीं है!
यह देने का भाव या प्रसन्नता की आदत हमें कायम रखनी है। हमने तय किया है कि आगे कुछ महीने तक हम मचिया बनाने/देने का प्रयास जारी रखेंगे। ज्यादा नहीं, हर महीने एक मचिया देने की आदत। जिससे हमारे ऊपर आर्थिक बोझ भी न पड़े और प्रसन्नता-आदत भी संतृप्त होती रहे।
इस प्रसन्नतादतों के विकास की प्रक्रिया में जो कुछ होगा, उसे ब्लॉग पर साझा करने का प्रयास भविष्य में होता रहेगा! 🙂

आपके यहां बहुत सारे फूलों के पौधे देख रहा हूं ,क्या आपके यहां डहेलिया और मधुलामती (लता)के पौधे है ,बस ऐसे ही पूछ रहा हूं।
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हाँ, हैं। डेह्लिया तो इस साल के लाये हैं। मधुमालती की लता पुरानी है।
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सुन्दर है आपकी सोच।
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