कुछ दिन पहले जमुना की गुमटी पर गया था, चप्पल चमकवाने। उस समय जमुना से फरमाइश की थी एक नये चप्पल की। जमुना ने बताया था कि वह पटना जा रहा है और तीन चार दिन में नया स्टाक ले कर आयेगा। तब उपलब्ध होगी चप्पल।
होली के बिहान से महराजगंज कस्बे की ओर साइकिल मुड़ गयी। अपेक्षा नहीं थी कि जमुना की गुमटी खुली होगी। पर जमुना काम पर बैठा मिला सवेरे साढ़े सात बजे। वह ब्लॉग का एक सशक्त चरित्र है। अपनेे गांव (छपरा जिला में हैै गांव) हो कर आया था। नाते रिश्ते वाले वहां जूता चप्पल बनाते हैं। उन्ही से सामान ला कर बेचता है।

“खुद क्यों नहीं बनाते नये जूते, चप्पल?”
“अभी आंख का ऑपरेशन कराया है। दो महीने तो सारा काम बंद था। अब नजर कमजोर होने से लगता है कि नया जूता बनाना हो नहीं पायेगा। यहां घर पर जूता बनाने की सब मशीन और औजार हैं। पर नया काम करना बंद कर दिया है। लड़के भी वह करने में रुचि नहीं रखते। अब छपरा से ला कर यहां बेचने में ज्यादा ठीक लगता है।” – जमुना ने बताया।
“कितने का सामान लाये हो छपरा से?”
“करीब चालीस हजार का। कुछ यहां गुमटी में है पर ज्यादा तो घर पर रखा है।”
जमुना ने बताया कि उनकी पैदाइश सन 1942 की है। अर्थात उम्र 78 साल की तो हो गयी। मुझसे बारह साल बड़े हैं जमुना और फिर भी इतना काम करते हैं! अभी आठ दस घण्टा गुमटी पर मरम्मत की काम में लगे रहते हैं। उनके काम करने के तरीके या उनकी आवाज में उद्वेग नहीं है। बोलते धीरे धीरे हैं और उसी तरह काम में स्थिर भाव से लगे रहते हैं। कोई हड़बड़ाहट या जल्दीबाजी नहीं। संत रैदास भी शायद इसी स्थिर और एकाग्र भाव से काम करते रहे होंगे।
उनके चार लड़के हैं। एक तो पास में जूता चप्पल मरम्मत का काम करता है। एक और बाजार में जूते की दुकान पर काम करता है। सभी बच्चे कमाते हैं पर रहते एक ही घर में हैं। चूल्हा एक ही जलता है।

जमुना बताते हैं कि उन्हे जोड़े रहने के लिये भाईचारे के अलावा पैसे की मजबूती चाहिये। अभी उनमें पौरुष है। पैसा उनके हाथ में है, जिससे परिवार एक साथ है।
“कितने साल और काम करने का इरादा है?”
जमुना ने दायें हाथ की तर्जनी ऊपर दिखा कर कहा – “जितना ईश्वर करायें।”
मैंने फिर भी पूछा – अपने हिसाब से कितना सोचते हैं कि कर पायेंगे?
“अपने दम खम से तो चाहूंगा कि बीस साल और ऐसे ही काम करूं।” – जमुना ने कहा। मैं आश्चर्य चकित रह गया। हम लोग दुनियां के पांच सात ब्लू-जोंस की बात पढ़ते हैं, जहां लोग 95-100 की उम्र के आसपास प्रसन्न और कर्मरत रहते हैं। इकीगाई (Ikigai) नामक पुस्तक में ओकीनावा (जापान), सार्डीना (इटली), लोमा लिण्डा (केलीफोर्निया), निकोया पेनिंसुला (कोस्टारिका) और इकारिया (ग्रीस) का नाम लिया गया है जहां लोग सौ साल से ज्यादा जीते हैं। और यहां पास में कस्बे में यह 78 साल का मोची दिन में काम में लगा रहता है और सम भाव से जीते हुये बीस साल और काम में लगे रहने की कल्पना करता है। उसे अपना इकीगाई (जीवनोद्येष्य) भी स्पष्ट है – अपने परिवार को अपनी आर्थिक कीली पर साधते हुये एकजुट रखना।

दीर्घ जीवन (जिसकी हम सब कामना करते हैं) के लिये आवश्यक तत्व हैं – भोजन, व्यायाम, जीवन का ध्येय तलाशना और परिवार तथा समाज में पक्का जुड़ाव। और इनमें से बहुत कुछ तो जमुना की लाइफ-स्टाइल में नजर आता है।
मैं जमुना से यह सुन कर इतना प्रसन्न हुआ कि उनके कंधे अपने हाथों में ले कर हल्के से दबाये। अगर जमुना अपनी गुमटी की सीट पर बैठे नहीं होते तो उन्हें गले से लगा लेता; फिर भले गांवदेहात के लोग वर्णव्यवस्था की कसौटी पर मुझे घटिया बताते रहते। एक व्यक्ति अगर 98 साल में इसी तरह कार्यरत रहने की सोच रखता है, तो वह मेरा गुरु सरीखा हुआ। बहुत कुछ सीखना होगा जमुना से। पहला तो यही सीखना है कि रोज 6-8 घण्टा काम करने का रुटीन बनाया जाये। अपना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सही रखा जाये और जमुना की तरह जीवन का एक ध्येय तलाशा जाये!

ऐसा नहीं है कि जमुना के जीवन में तनाव नहीं हैं। चार बेटों के परिवार को एक जगह रखने के प्रयत्न में कभी कभी तनाव होता है। अभी मई महीने में नातिन की शादी पड़ी है। उसमें, बकौल जमुना, कम से कम चार लाख खर्च होगा ही। उसके इंतजाम का तनाव है। पर वे अपनी दिनचर्या बताते हैं। तीन-चार बजे के बीच उठ जाते हैं। सुरती खा कर शौच के बाद नहा लेते हैं। पूजा पाठ के लिये उन्होने अपनी गुमटी में लगी भक्त रैदास महराज का चित्र दिखाया। सवेरे अपनी गुमटी में बैठने के पहले सैर करते हैं। उसके बाद गुमटी पर बैठने के बाद उठना नहीं होता। “ग्राहक आते जाते रहते हैं, तो कैसे उठ सकता हूं।”
जमुना का सबसे बड़ा लड़का टेण्ट हाउस और जूता चप्पल की दुकान पर काम करता है। दूसरा लड़का बम्बई में है। तीसरा सहदेव गुमटी पर साथ बैठता है और चौथा भी यही काम करता है।

जमुना ने मुझे चप्पल दिखाये। मेरे नाप के चप्पल को एक बार और साफ किया और पॉलिश रगड़ा। एक पॉलीथीन में रख कर मुझे दिया। मैंने बिना मोलभाव के जितना जमुना ने मांगा, उतना दाम दिया। उन्होने बताया – “पहले आप 250 में ले कर गये थे चप्पल। अब दाम बढ़ गये हैं। अब आप बीस रुपया ज्यादा कर दे दीजिये।”

दो सौ सत्तर में चमड़े की चप्पल और दीर्घायु के बारे में जमुना के एक प्रत्यक्ष उदाहरण से सीख – सौदा बुरा कत्तई नहीं रहा। गर्मी के मौसम में जूता पहनने की बजाय चप्पल पहनना ज्यादा सहूलियत वाला होता है और पुरानी चप्पल दस साल चल चुकी थी।
Das saal chappal chal gayi. aur aapne pahan bhi li. ye bhi kam sikhne ki baat nahi hai.
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इस्तेमाल कम हुआ। पांच साल अफसरी के थे, तब चमड़े का जूता प्रयोग अधिक होता था। नौकरी के बाद कुछ प्रयोग बढ़ा। पर सर्दियों में जूता ही पहना जाता था।
उस चप्पल की दो तीन बार रिपेयर जमुना ने की। इस बार देखते ही बोला – अब भी चला रहे हैं इसे आप?! 🙂
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