मैं गांव के सबर्बन रूपांतरण की कल्पना करता हूं। अगर प्रयाग-वाराणसी का वैसा विकास हुआ जैसा वडोदरा-अहमदाबाद का है तो उमेश की दुकान साणद की एक दुकान सरीखी होगी एक दशक में। कटका साणद जैसा सबर्ब बन जायेगा।
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शांति, बद्री साधू और बंसी
बंसी कलकत्ता में सम्भवत: ड्राइवर थे। बंगाल में कहीं वे शांति के सम्पर्क में आये होंगे और उनसे विवाह कर अपने गांव वापस लौटे। गांव में उन्हे स्वीकार नहीं किया गया। तब बंसी के मामा, बद्री साधू ने उन्हें अपने यहां आश्रय दिया।
आज गांव और #गांवपरधानी
“नेता लोगन क बहुत कपड़ा धोवात-कलफ-प्रेस करात हयें। फुर्सत नाहीं बा (नेता लोगों के आजकल प्रधानी चुनाव के कारण बहुत कपड़े धुलाई-कलफ लगाई और प्रेस कराई के लिये मिल रहे हैं। फुर्सत नहीं मिल पा रही)।”
