2 मचिया बन गये अंतत:


मचिया के फ्रेम से मेरी पत्नीजी को एक और रचनात्मक काम मिल गया। … मैं बार बार जा कर उन्हे तन्मयता से पेण्ट करते देखता रहा। बहुत कुछ ऐसा भाव था उनके मन में जैसे कोई महिला एक शिशु को दुलार रही हो।

राजेश की गुमटी और गांव के सामाजिक-आर्थिक बदलाव


राजेश में विनम्रता भी है। वह अदब से बात करता है। वह सफल हो सकता है। और मैं चाहता हूं कि वह सफल बने। वह गांव (सवर्णों) के जुआरी-गंजेड़ी और निकम्मे नौजवानों की भीड़ से अलग अपनी जमीन और पहचान बनाये। यह आसान नहीं है। पर यह सम्भव है।

स्कूल बंद हैं तो घर में ही खोला एक बच्चे के लिये स्कूल


सात साल की पद्मजा का अध्यापक बनना मुझे कठिन काम लगा। बहुत ही कठिन। एक बच्चे की मेधा और उसकी सीखने के स्तर पर उतर कर सोचना आसान काम नहीं है। केल्कुलस पढ़ाना साधारण जोड़, घटाना पढ़ाने की अपेक्षा आसान है।

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