साइकिल सैर की एक दोपहर – विचित्र अनुभव


वे दम्पति भारत के उस पक्ष को दिखाते हैं जो जाहिल-काहिल-नीच-संकुचित है। भारत अगर प्रगति नहीं करता तो ऐसे लोगों के कारण ही।

उठो; चलो भाई!


यह एक पुरानी पोस्ट है – बारह जनवरी 2013 की। मैं अस्पताल में भर्ती था। शरीर इण्ट्रावेनस इंजेक्शनों से एण्टीबायोटिक अनवरत भरने की प्रक्रिया से छलनी था। पर उस समय भी मन यात्रा की सोच रहा था।

ललही छठ के दिन ढोल ताशा


ये ढोल है और वो ताशा। उसने मुझे इस प्रकार से उत्तर दिया मानो उम्रदराज होने पर भी जनरल नॉलेज में तंग होने वाले व्यक्ति पर उसे आश्चर्य/तरस हो।

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