गरीब और विपन्न हैं। छ दिन पैदल चलने पर शरीर और मन टूट गया है। पर फिर भी अपने जेठ का आदर और किसी बाहरी के देखने पर मुंंह छिपा लेने का शिष्टाचार अभी उनमें बरकरार है।
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माणिक सेठ कहते हैं जिंदगी गोलों में बंध गयी है
“अब बस यही गोले हैं, और गोलों में खड़े ग्राहक। जिंदगी गोलों में बंध गयी है। पता नहीं कितने दिन चलेगा। शायद लम्बा ही चलेगा!” – माणिक कहते हैं।
लॉकडाउन 3.0 में #गांवदेहात का माहौल
अब बशीर बद्र की पंक्तियाँ, संशोधन कर, गांव के लिये भी लागू हो रही हैं – कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से। ये कोरोना काल का गांव है; ज़रा फ़ासले से मिला करो।
सुग्गी के मास्क #ग्रामचरित
मेहनती है सुग्गी। घर का काम करती है। खेती किसानी भी ज्यादातर वही देखती है। क्या बोना है, क्या खाद देना है, कटाई के लिये किस किस से सहायता लेनी है, खलिहान में कैसे कैसे काम सफराना है और आधा आधा कैसे बांटना है – यह सब सुग्गी तय करती है।
लॉकडाउन : रीता पाण्डेय के मानसिक थकान मिटाने के उपाय – भाग 2
गांव का यह घर एक कैनवास है – एक विस्तृत कैनवास। जिस पर अपने मन माफिक आड़ी तिरछी लाइनें उकेर कर कैरीकेचर बनाया जा सकता है। पत्नीजी ने यह बहुत गहरे से समझ लिया है।
लॉकडाउन में गुन्नीलाल – गांव के सखा
कल सवेरे साइकिल से उनकी ओर गया। गुन्नीलाल जी हमेशा बाहें फैला कर गले मिलते थे – यही हमारा नॉर्मल मोड ऑफ अभिवादन था। पर कल कोरोनावायरस काल में उन्होने दूर से नमस्कार कर स्वागत किया। घर के बाहर नीम के पेड़ के नीचे हम बैठे भी सोशल डिस्टेंसिंग के नॉर्म का विधिवत पालन करते हुये।