उसी दौरान मैं माही नदी के किनारे बहुत घूमा। उसके दृष्य अभी भी याद हैं। माही नदी में एक बरसाती नदी “लाड़की” आ कर मिलती थी। मेरे मन में यह भी साध बाकी रही कि चल कर लाड़की का उद्गम स्थल देखूं।
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भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
उसी दौरान मैं माही नदी के किनारे बहुत घूमा। उसके दृष्य अभी भी याद हैं। माही नदी में एक बरसाती नदी “लाड़की” आ कर मिलती थी। मेरे मन में यह भी साध बाकी रही कि चल कर लाड़की का उद्गम स्थल देखूं।
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उनका जन्म सन बयालीस में हुआ था। चीनी मिल में नौकरी करते थे। रिटायर होने के बाद सन 2004 से नित्य गंगा स्नान करना और कथा कहना उनका भगवान का सुझाया कर्म हो गया है।