रेल की दुनिया – सन 1999 में जनसत्ता में छपा लेख


स्क्रैप-बुक बड़े मजे की चीज होती है. आप 8-10 साल बाद देखें तो सब कुछ पर तिलस्म की एक परत चढ़ चुकी होती है. मेरी स्क्रैप-बुक्स स्थानांतरण में गायब हो गयीं. पिछले दिनों एक हाथ लगी – रद्दी के बीच. बारिश के पानी में भी पढने योग्य और सुरक्षित. उसी में जनसत्ता की अक्तूबर 1999Continue reading “रेल की दुनिया – सन 1999 में जनसत्ता में छपा लेख”

टीटीई की नौकरी के विरोधाभास


ट्रेन के समय पर कोच के टीटीई को निहारें. आप कितने भी लोक प्रिय व्यक्ति हों तो भी आपको ईर्ष्या होने लगेगी. टीटीई साहब – “कोई बर्थ खाली नहीं है” कहते हुये चलते चले जा रहे हैं; और पीछे-पीछे 7-8 व्यक्ति पछियाये चल रहे हैं. टीटीई साहब मुड़ कर उल्टी दिशा में चलने लगें तोContinue reading “टीटीई की नौकरी के विरोधाभास”

ममता बैनर्जी और निचले तबके के लोग


मैं जॉर्ज फर्नाण्डिस को मेवरिक नेता मानता हूं. और लगभग वैसा मत ममता बैनर्जी के विषय में भी है. एक ट्रेन के उद्घाटन के सिलसिले में नवम्बर 1999 में बतौर रेल मंत्री उनका मेरे मण्डल पर आगमन हुआ था. जैसा रेल मंत्री के साथ होता है – कार्यक्रम बहुत व्यस्त था. ट्रेन को रवाना करContinue reading “ममता बैनर्जी और निचले तबके के लोग”

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