सुरती, दारू की तरह बहुत सामाजिक टाइप की चीज है। अजनबी व्यक्ति भी सुरती फटकने वाले के पास खिंचा चला आता है। वह निसंकोच सुरती मांग लेता है और देने वाला सहर्ष देता भी है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
सुरती, दारू की तरह बहुत सामाजिक टाइप की चीज है। अजनबी व्यक्ति भी सुरती फटकने वाले के पास खिंचा चला आता है। वह निसंकोच सुरती मांग लेता है और देने वाला सहर्ष देता भी है।