लॉकडाउन से लोग समझ रहे हैँ अपने फ्लैट में टेलीवीजन के सामने, किचन में नये व्यंजन का प्रयोग करते, मेडिटेशन करते या किताब पढ़ते बंद लोग। फ्लैट का एक दरवाजा होता है। वह दरवाजा बंद यानी लॉकडाउन।

गांव में वह दरवाजा कहां है? यहां प्रधानमंत्री आवास योजना में बने एक या दो कमरे हैं। उनसे अलग बना शौचालय। वहीं बाहर कहीं हैण्डपम्प। कमरे के बाहर गाय-बकरी – यहां तक कि घोड़ा भी बंधे हैं। उसके साथ जाती है गांव की सड़क। जिसपर अगर डामर बिछा है,या खडंजा है तो औरतें उसी पर कपड़े भी कचारती हैं। उसी किनारे उपले पाथती हैं। उपडऊर भी वहीं बना होता है मानो उपलों का शिवलिंग हो। यही नहीं, घर के आसपास खेत, जिसमें वह परिवार स्वामित्व के आधार पर या अधियरे के रूप में, खेती करता है, वह भी घर का ही एक्स्टेंशन होता है। और वह एक्स्टेंशन दूसरों के घर/एक्स्टेंशन से गुत्थमगुत्था हुआ होता है।
घर और बाहर के बीच सीमा कहीं होती ही नहीं।
घर की सीमा बनाने वाले धनी बहुत कम हैं – वे जिनके पास अहाता होता है। उनका घर अहाता की चारदीवारी में होता है। ऐसे परिवार 1-2 प्रतिशत हैं।
लॉकडाउन तो तब कहा जाये जब घर ऐसा हो, जिसपर लॉक हो/लग सकता हो। गांव में वैसे घर गिनती के हैं।
लॉकडाउन की शहराती कल्पना, गांव के परिप्रेक्ष्य में हास्यास्पद है।

शहर में लॉकडाउन की इकाई एक न्यूक्लियस परिवार है। गांव में वह हो ही नहीं सकता।
शिवनाथ उम्रदराज है। पत्नी चल बसी है। एक कमरा है, जिसमें लड़का और बहू रहते हैं। उसी में दिन में वे किराने की दुकान भी खोलते हैं। शिवनाथ बाहर एक टटरी की आड़ लगा कर पूस की सर्दी में भी खुले आसमान के नीचे सोता है। पास में बकरी और कुकुर भी रहते हैं। … कहां लगायेँगे लॉक? कहां करेंगे लॉकडाउन?
शायद गांव एक इकाई है – उसी तरह जैसे शहर में न्यूक्लियर परिवार एक इकाई है। 500-1000 लोगों का गांव एक परिवार माना जाये। उनके बीच हेल मेल तो लॉकडाउन के दौरान भी मिटाया नहीं जा सकता। एक गांव से दूसरे गांव में सम्पर्क न रहे या “विलेज डिस्टेंसिंग” की बात कही जाये तो वह समझ में आने वाली बात है। और इस दौरान – लॉकडाउन पीरियड में, कमोबेश वही हुआ भी है।

आने वाले दो साल – अगर इस वायरस का कोई मुकम्मल टीका नहीं मिल पाया – कठिन होंगे। ग्रामीण इलाके से बहुत सी नौजवान पीढ़ी तो शहर को जायेगी रोजगार की तलाश में। उम्रदराज लोग ज्यादा होंगे गांव में। और तब उनकी देखभाल और खेती किसानी का काम करने में तालमेल बिठाना होगा।
आगे आने वाले साल दो साल -जब सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा; खेती किसानी भी होगी और बड़े बूढ़ों को बचाते हुये कामधाम भी होगा, तब इन सब अनिवार्यताओं को ध्यान में रख कर ही तकनीकें विकसित करनी होंगी सोशल डिस्टेंसिंग की।
