ऑनलाइन और मॉल से गांव के किराना स्टोर की ओर

हमने बिगबाजार, अमेजन, फ्लिपकार्ट और अन्य बड़ी दुकानों/मॉल्स पर पिछले दस साल से वरीयता दे कर नुक्कड़ की किराना दुकानों से बड़ी बेरुखी दिखाई है। पर कोरोना लॉकडाउन ने इस विषय में हमें यू-टर्न लेने पर विवश कर दिया है।

छोटे नुक्कड़ वाले स्टोर्स के प्रति अपने व्यवहार को ले कर जो भाव आ रहे हैं, उनके लिये पछतावा ही उचित शब्द है।

आखिर हम मध्यवर्ग के लोगों ने चार पैसे सस्ते के लोभ में घर के पास की (और आत्मीय) बाजार व्यवस्था को मार डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

अमेजन वाला, पहले अपनी लॉकडाउन के बाद की समस्याओं की बात करता था, अब सरकार की गाइडलाइंस की आड़ ले रहा है। महीने भर से सामान इसने सप्लाई नहीं किया!

और ये बड़े मॉल या ऑनलाइन वाले व्यापार के समीकरण में बदलाव से इतनी बुरी तरह लड़खड़ा जायेंगे – यह अंदाज नहीं था। कोरोना लॉकडाउन में जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब वे बेशर्म, गधे के सर पर सींग जैसे गायब हो गये। अपनी सेवाओं की गुणवत्ता की गाथा बहुत बूंका करते थे, पर अब अपनी सप्लाई की तारीख पे तारीख भर बढ़ा रहे हैं।

अब हमने तय किया है कि लोकल किराना स्टोर को वरीयता देंगे। आखिर, इन स्थानीय उद्यमियों ने लॉकडाउन की असुविधा झेलते, अपने स्वास्थ्य को खतरे में डालते, और दिन रात काम करने की तत्परता दिखाते हुये अपने ग्राहक के प्रति प्रतिबद्धता तो दिखाई। इन बड़े नाम वालों जैसे मुंह छिपा कर ग्राहक को उसके हाल पर तो नहींं छोड़ा।


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यहां गांव में, घर से 2 कोस दूर, बाबूसराय में राजू जायसवाल की किराना की थोक दुकान है। आसपास के गांवों के छोटे दुकानदार उनसे सामान खरीद कर ले जाते हैं। आज उन्ही की दुकान पर गया। मुंह पर मास्क लगाये, जेब में सेनीटाइजर की बोतल रखे और साइकिल से नहीं, कार से। अर्थात कोरोना काल में पूरी तैयारी के साथ। जायसवाल जी के छोटे भाई, रविशंकर ने मुझसे सामान की लिस्ट ली, और सामान ला कर दिया।

मैंने पूछा – कोई यूपीआई एड्रेस या बैंक अकाउण्ट दे सकते हैं, जिसमें सीधे कैशलेस पैसा पेमेण्ट किया जा सके?

रविशंकर जायसवाल

रविशंकर जायसवाल ने अपने मोबाइल से अपना पेटीएम कोड दिखाया। मैंने दुकान के बाहर ही खड़े खड़े अपने मोबाइल से उन्हे पेमेण्ट किया। बिना किसी सोशल टच के या बिना नोट थमाने-लेने की असहज भावना के। सामान का थैला लेने देने में जो भी स्पर्श हुआ हो, उससे बचाव के लिये थैला कार में रख कर सेनीटाइजर से हाथ मला। किराना खरीददारी का एक सधा हुआ, नपा-तुला अनुभव।

इन स्थानीय उद्यमियों ने लॉकडाउन की असुविधा झेलते, अपने स्वास्थ्य को खतरे में डालते, और दिन रात काम करने की तत्परता दिखाते हुये अपने ग्राहक के प्रति प्रतिबद्धता तो दिखाई। इन बड़े नाम वालों जैसे मुंह छिपा कर ग्राहक को उसके हाल पर तो नहींं छोड़ा।

कुल मिला कर भविष्य के लिये तय हुआ कि रवि को ह्वाट्सएप्प पर अपने सामान की लिस्ट दिया करूंगा और दाम का भुगतान भी यूपीआई के माध्यम से किया करूंगा। नोट गिनने-छूने का झंझट ही नहीं।

राजू जायसवाल की लोकल किराना दुकान से महीने दर महीने की नियमित खरीद के तार जोड़ लिये मैंने।

राजू/रविशंकर जायसवाल और उनके अन्य भाई बड़े अदब से बात करते हैं। गांवदेहात में ब्राह्मण और प्रतिष्ठित की जो इज्जत है, वह मुझे उनसे मिलती है। गुणवत्ता में कोई गड़बड़ी हो तो बड़ी सरलता से सामान की वापसी या अदलाबदली हो जाती है। बिगबाजार जैसी वेराइटी नहीं होती यहां, पर पिछली बार अखरोट मंगा कर दिया ही था राजू ने।

आशा है भविष्य में उनकी किराना दुकान से लम्बा एसोसियेशन रहेगा। लॉकडाउन काल में ही नहीं, उत्तर-कोरोना युग में भी। और राजू जायसवाल तथा उनके बंधु-बांधव गांवदेहात को बेहतर समझने के लिये अपने व्यवहार/अनुभव का ज्ञान मुझे देते रहेंगे।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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