कैलाश दुबे: कुंये खुदने बंद हुये और सामाजिकता खत्म होने लगी

गांव के परिवर्तन को जानना हो तो सूक्ष्म दृष्टि मिलती है कैलाश जी से। आज वे अकेले बैठे थे। बताया कि सवेरे पांच बजे उठ कर नित्यकर्म, स्नान और पूजा पाठ कर चुके हैं। उनके माथे पर त्रिपुण्ड भी ताजा लगा हुआ था।

उनसे उनके घर के सामने बने कुयें पर बात होने लगी।

कैलाश दुबे जी ने बताया कि यह कुआं 1975-76 में बना था। इसके बाद एक डेढ़ दशक में आसपास एक दो कुंये और खुदे पर फिर कुंये बनने की परम्परा खत्म हो गयी। कई हैण्डपम्प लगे इसके बाद। अधिकांश सरकारी स्कीम के तहद लगे। फिर बोर कर सबमर्सिबल पम्प का जमाना आया।

कुंआ बनाई – बेस में जामुन की लकड़ी का वलय (डिस्क) बिठाया जाता था। उसकी मोटाई लगभग 8इंच की थी और वलय की चौड़ाई एक फुट। जामुन की लकड़ी का जमुअट पहले से बना कर तैयार रखा जाता था। इसको बेस पर स्थिर करने के बाद उस पर ईंट की जुड़ाई होती थी।

इस कुंये के खोदे जाने के बारे में कैलाश जी ने बताया कि लगभग चालीस हाथ (60फुट) की खुदाई तो गांव के ही मजदूरों के द्वारा हुई। उसके बाद जमीन गीली दिखने से लगा कि पानी है नीचे। तब आसपास के सभी लोगों के सहयोग से लगभग 15-16 फुट और खोदा गया। लोग मिट्टी निकालने और पानी उलीचने का काम करते थे। उस काम के लिये रोज पर्याप्त मात्रा में सत्तू और गुड़ (राब) का रस रखा जाता था। लोग सतुआ-रस सेवन कर सामुहिक श्रमदान देते थे। करीब सोलह फुट इस प्रकार खोदने पर पानी की तेज धार निकली। उस समय खुदाई का काम रोक कर पानी उलीचने और जमुअट बिठाने का काम हुआ।

कैलाश जी के घर के सामने का कुंआ सन 1976 में बना।
जमुअट बिठना

कुंये के बेस में जामुन की लकड़ी का वलय (डिस्क) बिठाया जाता था। उसकी मोटाई लगभग आठ इंच की थी और वलय की चौड़ाई लगभग एक फुट। जामुन की लकड़ी का यह जमुअट पहले से बना कर तैयार रखा जाता था। इसको बेस पर स्थिर करने के बाद उस पर ईंट की जुड़ाई प्रारम्भ की जाती थी। ईंट की जुड़ाई सामान्य चूना-गारा से की जाती थी। अगर कहीं मिट्टी में बालू ज्यादा हो, तभी ईंट की जुड़ाई में सीमेण्ट का प्रयोग किया जाता था। बालू वाली मिट्टी होने पर ईंट को सपोर्ट देने के लिये अरहर के रंहठा आदि जमाये जाते थे।

Jamuat - the ring made of Jamun wood
जमुअट का डिजाइन

कैलाश जी के यहां वाले कुयें में बालू की समस्या नहीं थी। ईंटों की जुड़ाई के लिये सीमेण्ट की जरूरत नहीं पड़ी। कुल पांच छ हजार रुपये में कुआं बन गया था। उस समय ईंट का रेट 100रुपया प्रति हजार ईंट था। लगभग तीन हजार ईंटें लगी थीं कुआं बनाने में। उस समय बकौल कैलाश जी “शिवानंद चाचा (मेरे स्वर्गीय श्वसुर जी) का ईंट भट्ठा” चल रहा था। ईंटें वहीं से आयी थीं।

जमुअट के लिये जामुन की लकड़ी का प्रयोग क्यों किया जाता है? इस बारे में कैलाश जी ने बताया कि जामुन की लकड़ी वातावरण में तो क्षरण का शिकार होती है, पर पानी में होने पर सड़ती नहीं। उसका बेस टिकाऊ रहता है। किसी और पेड़ की लकड़ी में यह गुण नहीं होता।

कैलाश दुबे जी
कुआं, तालाब, धर्म और कलिकाल

कुंये की बात करते करते कैलाश जी के घर से चाय बन कर आ गयी थी। वह पीते हुये उन्होने इस गतिविधि को धर्म से जोड़ा। कुंआ और तालाब बनवाना धर्म का कार्य था। हमारे समाज में लोग धर्म के काम से ही जुड़ते हैं। सबके जुड़ाव से उपलब्ध जल पर सभी का अधिकार होता था। उस समय गांव में तीन कुंये थे और उन्ही का पानी गांव भर के लोग इस्तेमाल करते थे। वही स्थिति तालाबों की थी। पर अब तो कलिकाल है। कलियुग का भी मध्य काल। धर्म का लोप तेजी से हो रहा है। इसलिये सामुहिकता और भाईचारा तेजी से खत्म हो रहा है। धर्म से ही प्रेम होता है। आजकल तो भाई भाई में प्रेम खतम होता जा रहा है। भाव, दया, प्रेम, संस्कार अब परिवार में ही लोप हो रहे हैं। इसलिये बाहर समाज में उसकी अपेक्षा करना व्यर्थ है। कलिकाल और उसमें लोगों के आचरण को ले कर कैलाश जी ने तुलसी बाबा के रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड के उद्धरण दिये। पर अब तो तुलसीदास के युग से और भी अधिक कलि-प्रभाव हो गया है! :sad:

अपने गांव (बभनौटी) की ही बात करते कैलाश जी ने कहा – लोगों का खानपान, अचार-विचार तो नब्बे परसेंट अशुद्ध हो गया है।

जमुअट के लिये जामुन की लकड़ी का प्रयोग क्यों किया जाता है? इस बारे में कैलाश जी ने बताया कि जामुन की लकड़ी वैसे तो क्षरित होती है, पर पानी में होने पर सड़ती नहीं। उसका बेस टिकाऊ रहता है। किसी और लकड़ी में यह गुण नहीं होता।

अब कुंये और तालाब कोई बनवाता नहीं। हैण्डपम्प जो सामुहिक प्रयोग के लिये लगे हैं, वे जिसके घर के पास हैं, वही उनका स्वामी बन बैठा है। पड़ोसी को भी उसका प्रयोग करने नहीं देता। जबकि, कुंये और हैण्डपम्प/सबमर्सिबल पम्प का जितना ज्यादा प्रयोग होगा, उतना ही वह चार्ज रहेगा। उतना ही वह अच्छा पानी देगा। पर लोग यह समझते ही नहीं। पानी पर स्वामित्व जताने लग रहे हैं। इससे कई हैण्डपम्प और कुंये बेकार हो गये हैं।

पानी का सम्मान नहीं है तो वह भी कम होता जा रहा है। गांव के पास से नहर जाती है, इसलिये पानी का स्तर थोड़ा ठीक है, वर्ना और जगहों पर तो पानी और नीचे चला गया है।

कैलाश जी ने कुंये, तालाब और जलप्रबंधन को सामुहिकता और धर्म से जो जोड़ा; उसमें मुझे बहुत सार नजर आया। आजकल देश में जल प्रबंधन पर जोर है। भाजपा सरकार और पार्टी को उसे धर्म से जोड़ना चाहिये।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “कैलाश दुबे: कुंये खुदने बंद हुये और सामाजिकता खत्म होने लगी

  1. जामुन वाटर पुरिफायर भी होता है।
    तालाबों के किनारे जामुन के वृक्ष होते थे जिनसे फल टुटकर तालाब में गिरते रहते थे और जल में जम्बु फल के गुण भी आते थे,जिससे पेट संबंधी विकार में कमी रहती थी। यह जम्बु द्वीप भी है – जामुन की अधिकता रही होगी।
    एक कारण यह भी हो सकता है कुएँ के बेस में जामुन की लकडी का रिंग रखने का।
    🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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    1. अपने अच्छी जानकारी दी. इस पर और अध्ययन किया जा सकता है.
      आपको धन्यावाद!

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