स्वास्थ्य का स्रोत – घर का बगीचा

हम दुखी थे कि इस साल जाने क्यों डेल्हिया के पौधे पनपे नहीं। नवम्बर में सही समय पर उनकी नर्सरी बना दी थी रामसेवक जी ने। पर शायद सर्दी ठीक ठाक नहीं पड़ी। अलग अलग पौध को केवल समय, खाद, पानी ही नहीं चाहिये होता। सही मौसम भी बहुत जरूरी होता है। खेतों में गेंहूं की फसल भी सर्दी कम पड़ने से खतरे में थी, पर दिसम्बर के उत्तरार्ध में पाला पड़ने से सम्भल गयी। वही लाभ शायद डेल्हिया को नहीं मिला।

रामसेवक जी ने बताया कि बनारस में मण्डुआडीह की नर्सरी वाले भी परेशन हैं। उनका डेल्हिया तैयार नहीं हो सका। अब बाहर से उन्होने पौधे मंगाये हैं, जिनमें फूल लगना शुरू हुये हैं। बकौल रामसेवक “बहुत मंहगे बिक रहे हैं” डेल्हिया के पौधे।

नर्सरी से खरीद कर लाया गया डेल्हिया

हम लोगों ने आकलन किया कि कम से कम कितने पौधे खरीदे जायें। रामसेवक जी को उतने लाने को कहा गया। रामसेवक जी सप्ताह में छ दिन बनारस के संस्थानों और बंगलों में काम करते हैं। रविवार को उनका छुट्टी का दिन होता है। उस दिन हमारे घर पर सवेरे कुछ घण्टे बगीचे में देते हैं। एक एक मिनट उनका दक्षता से काम करते बीतता है। रविवार को हमने कहा था उनसे डेल्हिया के पौध लाने को। कल उन्होने बनारस से खरीदा होगा और आज सवेरे वे घर पर आये उन्हें रोपने के लिये।

घर का बगीचा शतायु बना सकता है। इस लिये मुझे भी चित्र खींचने या ब्लॉग पोस्ट लिखने की बजाय दिन में दो घण्टा बगीचे में काम करते व्यतीत करना चाहिये। यह मैं कई बार सोचता हूं। कभी शुरुआत भी करता हूं। पर फिर वह उत्साह सतत कायम नहीं रह पाता। 😦

सवेरे का समय। पेड़ों से छन कर आती गुनगुनी धूप और तेजी से अपने दक्ष हाथों प्लास्टिक के गमलों से निकाल कर क्यारी में रोपते रामसेवक। बहुत अच्छा लग रहा था मुझे देखना। फुर्ती से उन्होने सभी पौधे रोपे। उनको पानी दिया। तब तक मेरी पत्नीजी चाय बना लाई थीं। पी कर उन्होने हम को नमस्कार किया – “चलूं साहब, पैसेंजर आने का समय हो गया है।”

सवेरे का समय। पेड़ों से छन कर आती गुनगुनी धूप और तेजी से अपने दक्ष हाथों प्लास्टिक के गमलों से निकाल कर क्यारी में रोपते रामसेवक। बहुत अच्छा लग रहा था मुझे देखना।

सवेरे की मेमू पैसेंजर प्रयाग सिटी से आती है। मेमू ट्रेन है तो समय पर ही आती है। रामसेवक हमारे बगल में ही रहते हैं। रेलवे स्टेशन भी दो-तीन सौ कदम पर है। पास पास में होने के कारण उन्होने पौधे भी रोप दिये, अपने घर से सामान ले कर फुर्ती से स्टेशन की ओर भी निकल लिये। पचास की उम्र होगी रामसेवक की। पर फुर्ती गजब की है। छोटा शरीर। तितली की तरह की चपलता है उनके काम करने में।

शरीर की तितली सी चपलता का राज बगीचे में काम करना है। यह मुझे समझ आता है। थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि मेरी पत्नीजी घर के पौधों को पानी डाल रही हैं। कण्डाल से एक छोटी प्लास्टिक की बालटी में पानी ले कर वे हर पौधे के पास जाती हैं और उसकी जरूरत अनुसार पानी उनकी जड़ों में उड़ेलती हैं। पानी कण्डाल से लेने, चलने, झुकने आदि में जो व्यायाम है, वह पत्नीजी के स्वास्थ्य को पुष्ट करता है। बगीचे में यह धीमे धीमे किया जाने वाला श्रम उन्हें दीर्घायु बनाने का निमित्त बन सकता है।

बगीचे में समय बिताते रीता पाण्डेय दिन भर में दस हजार से ज्यादा कदम चलती हैं।

बगीचे में समय बिताते रीता पाण्डेय दिन भर में दस हजार से ज्यादा कदम चलती हैं।

घर का बगीचा शतायु बना सकता है। इस लिये मुझे भी चित्र खींचने या ब्लॉग पोस्ट लिखने की बजाय दिन में दो घण्टा बगीचे में काम करते व्यतीत करना चाहिये। यह मैं कई बार सोचता हूं। कभी शुरुआत भी करता हूं। पर फिर वह उत्साह सतत कायम नहीं रह पाता। :sad:

लम्बा जीना है और सार्थक जीना है तो बगीचे की शरण जाना होगा।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started