गांव में रहने के कुछ स्वाभाविक नुकसान हैं; पर यहां सीखने को शहर के बच्चे से कम नहीं है। शायद वह जो सीख पाये; वह शहरी बच्चे कभी अनुभव न कर सकें। वह भाषा, मैंनरिज्म और आत्मविश्वास में उन्नीस न पड़े; बाकी सब तो उसके पास जो है, वह बहुत कम को मिलता होगा अनुभव के लिये!
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नदी, मछली, साधक और भगव्द्गीता
अचिरेण – very soon – में कोई टाइम-फ्रेम नहीं है। वह ज्ञान प्राप्ति एक क्षण में भी हो सकती है और उसमें जन्म जन्मांतर भी लग सकते हैं!
नहुष -स्वर्ग से पतित नायक
नहुष में स्वर्ग से पतित होने पर भी मानवीय दर्प बना है। यही दर्प आज भी सफलता से डंसे पर अन्यथा कर्मठ मानवों में दिखता है। यही शायद मानव इतिहास की सफलताओं की पृष्ठभूमि बनाता है।
