जब यहां गड़ौलीधाम में महादेव की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी है तो गंगा किनारे थोड़ा व्यवस्थित घाट बना कर वहां इन सज्जनों जैसी विभूतियों को अपने यहां नित्य आने के लिये आकर्षित करना चाहिये। धाम उन्ही जैसों से जीवंत होगा!
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भीमाशंकर – सातवाँ ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न
प्रेमसागर अब एस्केप वेलॉसिटी पा चुके हैं। शायद। अब उनके पास इतने अधिक सम्पर्क हैं, इतना नेटवर्क है कि फोन पर बतियाने में ही समय जाता होगा, प्रकृति और आसपास के निरीक्षण में नहीं। मेरे हिसाब से वे एक विलक्षण यात्रा को रेत की तरह झरने दे रहे हैं!
प्रेमसागर और त्र्यम्बकेश्वर
हम तीनों को – जिन्होने प्रेमसागर के शुरुआती यात्रा में सहायता की थी; को प्रेमसागर की प्रवृत्ति में आया परिवर्तन आश्चर्य में डालता है।
प्रवीण जी मुझे कहते हैं कि इस पूरे प्रकरण पर दार्शनिक तरीके से सोचा और लिखा जा सकता है!
