खुले में शौच


सन 1987 में मैने अपने बाबा का दाह संस्कार किया था। गांव में लगभग दो सप्ताह रहा उनके क्रिया-कर्म सम्पादित करने के लिये। दस दिन तक अछूत था मैं। अपना भोजन नहीं बनाता था। घर में एक बुआ जी बना देती थीं और भोजन की पत्तल मेरी तरफ़ सरका देती थीं। अगर रोटी अतिरिक्त देनीContinue reading “खुले में शौच”

अरहर के पौधे


उन्हे पौधे कहना एक अण्डर स्टेटमेण्ट होगा। आठ दस फुट के हो गये हैं, पेड़ जैसे हैं। फूल लगे हैं। यूं कहें कि फूलों से लदे हैं। करीब दो दर्जन होंगे। गांव के मेरे घर में अनाधिकार आये और साधिकार रह रहे हैं। पिछले सीजन में जो थोड़ी बहुत अरहर हुई थी खेत में; फसलContinue reading “अरहर के पौधे”

मिश्री पाल की भेड़ें


गड़रिया हैं मिश्री पाल। यहीं पास के गांव पटखौली के हैं। करीब डेढ़ सौ भेड़ें हैं उनके पास। परिवार के तीन लोग दिन भर चराते हैं उनको आसपास। मुझे मिले कटका रेलवे स्टेशन की पटरियों के पास अपने रेवड़ के साथ। भेड़ें अभी ताजा ऊन निकाली लग रही थीं। हर एक बेतरतीब बुचेड़ी हुई। उन्होनेContinue reading “मिश्री पाल की भेड़ें”

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