उनकी गांव में मकान बनाने की सोच बन रही है। बसेंगे भी?


अगर ईमानदारी से कहा जाये तो हर व्यक्ति, जो गांव में रीवर्स माइग्रेट होने की सोचता है, उसे कुछ न कुछ मात्रा में नीलकण्ठ बनना ही होता है। पर मैं अगर गांव में आने के नफा-नुक्सान का अपनी प्रवृत्ति के अनुसार आकलन करता हूं; तो अपने निर्णय को सही पाता हूं।

सतर्क रेल कर्मी, बसंत चाभीवाला


आठ किलोमीटर की पेट्रोलिंग करता है बसंत रोज। उसके कंधे पर जो औजार और फ्लैग पोस्ट होता है, उसका वजन आठ-दस किलो होता है। सवेरे सवेरे, भोर की वेला में सर्दी-गर्मी-बरसात झेलता उस वजन के साथ रेल पटरी-गिट्टी पर चलता है बसंत। निगाहें पटरी की दशा और चाभियों की कसावट पर रखनी होती है। … आजकल सेना के जवानों का प्रशस्ति गायन फैशन में हैं। पर बसंत चाभीवाले की नौकरी कौन कम साधुवाद की है?!

स्कूल बंद हैं तो घर में ही खोला एक बच्चे के लिये स्कूल


सात साल की पद्मजा का अध्यापक बनना मुझे कठिन काम लगा। बहुत ही कठिन। एक बच्चे की मेधा और उसकी सीखने के स्तर पर उतर कर सोचना आसान काम नहीं है। केल्कुलस पढ़ाना साधारण जोड़, घटाना पढ़ाने की अपेक्षा आसान है।

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