तालियां बज रही थीं। सब खुश थे। हेड वेटर के लिये रुटीन था। अन्य कर्मचारियों के लिये भी – सभी निस्पृह भाव से काम कर रहे थे।
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अरे वह क्रियेटिव – फन ही नहीं, देने की प्रसन्नता की आदत विकसित करना भी था।
आनंद को केंद्र में रख कर अपनी आदतें ढालने की एक सयास कोशिश की जा रही है। विचार यह है कि हम उसे पैसा खर्च कर, सामान खरीद कर, मार्केटिंग कर या इधर उधर की बतकही/परनिंदा कर नहीं, विशुद्ध प्रसन्नता की आदतें विकसित करने से करेंगे।
अशोक शुक्ल ने दैनिक पूजा का लाभ बताया, और वह बड़ा लाभ है!
अशोक पण्डित ने कहा कि शोक और दु:ख अलग अलग मानसिक अवस्थायें हैं। जहां दु:ख का मूल अभाव में है; वहीं शोक अज्ञान से उपजता है – अज्ञान प्रभवं शोक: (गरुड़ पुराण)।
